शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

जो लोग धन में मुझसे बड़े हैं `और "मुझे,, भीड़ का हिस्सा समझते हैं । परंतु बुद्धि और मस्तिष्क से भी बड़ा हूं , इसलिए धनी लोग मेरे सवालों का जवाब देने से कतराते हैं। इसी कारण धनी लोगों से मेरे मतभेद हो जाते हैं मुनिराम गेझा ( एक और विचारक

शुक्रवार, 20 मार्च 2020

बहुजन समाज की राजनीति का उदय या अन्त मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

बहुजन समाज की राजनीति का उदय या अन्त भारत में अधिकतर रूढ़िवादी प्रथाओं का अंत सदियों के बाद हुआ है परंतु जिस स्थान और घर शिक्षा प्रकाश से वंचित रह गया है उसी स्थान और घर में आज भी विभिन्न प्रकार की रूढ़ीवादी प्रथाएं अपनी जड़ जमाई है रूढ़िवादी परंपराओं को लेकर ही भारत में छोटे-छोटे राज्यो का निर्माण और शासन हुआ है और भारत को गुलाम हुआ है इन रूढ़ीवादी परंपराओं को खत्म करने में भारत का गुलाम होने का अहम दायित्व रहा है जैसे सती प्रथा पर रोक सबको , संपत्ति का अधिकार , स्त्रियों को पुरुष के समान अधिकार , पति की मृत्यु के बाद स्त्री को दूसरी शादी का अधिकार आदि इसके बाद भारत में रूढ़िवादी परंपराओं को स्थाई रूप से नियम बनाकर समाप्त कर का दायित्व भारत के सविधान को जाते हैं वो भी अलग बात है कि कुछ लोग शिक्षा , बौद्धिक विकास नहीं होने के कारण उनको रूढ़ीवादी परंपराओं को नहीं जिकड़ी रखा है परंतु भारतीय संविधान ने तो सबको समान अधिकार दिलाने का संकल्प लिया है इसी संकल्प की नींव को ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी नहीं रखी है और रूढ़ीवादी परंपराओं के कारण ही उन्हें और उनकी पत्नी को उनके पिता द्वारा अपने घर से निकाल दिया गया। जिनको आसरा शेख फातिमा बीवी ने दिया और 1948 में (दलितो )बहुजन समाज के विद्यालय खोलो इस संकल्प को डॉक्टर बी आर अंबेडकर ने भारतीय संविधान को लेकर स्थाई नियम अनुसार बनाया कुछ समय बाद बहुजन समाज के लिए भी बौद्ध धर्म का रास्ता भी डॉक्टर बी आर अंबेडकर द्वारा इसी संकल्प को पूर्ण करने के लिए बहुत जनों के लिए धरातल पर राजनीति करने का पूरा का दायित्व मान्यवर साहब काशीराम को जाता है परन्तु साहब कांशीराम द्वारा बार पूर्व क्या गया राजनीतिक धरातल को वह हिस्सा जो भारतीय संविधान के निर्माता डॉक्टर बी आर अंबेडकर द्वारा अपनाया गया था जिसको वर्ण भारत में वर्ण व्यवस्था और रूढ़ीवादी परंपराओं तथा बहुजन समाज की अज्ञानता के कारण पूरा नहीं कर सके क्योंकि डॉक्टर बी आर अंबेडकर को संविधान सभा में जाने से रोका गया सरदार पटेल यह बात कही थी कि " हमने डॉक्टर बी आर अम्बेडकर के लिए संविधान सभा के बाकी दरवाजे तो क्या रोशनदान भी बंद कर दिए है ,, परन्तु दलित नेता योगेंद्र नाथ मंडल और मुस्लिम लीग की मदद से बीआर अंबेडकर संविधान सभा में भेजा गया तुझे उसके बाद चुनाव अंबेडकर चुनाव लड़ा था कांग्रेस ने उनके ही एसिस्टेंट को चुनाव लड़ा बीआर अंबेडकर चुनाव हरवा दिया चुनाव जीत सभा का आयोजन किया जिसमें बी आर अंबेडकर को भी को भी आमंत्रित और बी आर अंबेडकर को विचार व्यक्त करने के लिए मंच पर बुलाया गया और जब बी आर अंबेडकर ने कहा अगर हाथी बैठ भी जाए तो भी गधे से ऊंचा होता है और उस बैठे हुए हाथी को खड़ा करने का प्रयास साहब कांशीराम द्वारा किया गया साहब कांशीराम कोई राजनीतिक परिवार से नहीं थे वे सिर्फ साधारण परिवार में जन्मे नौकरी करते हुए पुणे पहुंच गए एक दिन उनके डिपार्टमेंट का व्यक्ति दीना भाना 14 अप्रैल की प्रार्थना पत्र अपने अधिकारी को दे रहा था परंतु वह अधिकारी किस देने से इंकार कर रहा था और अगर तुमने छुट्टी कर ली तो तुम्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा फिर भी दीना भाना को अपनी नौकरी से ज्यादा प्यारी 14 अप्रैल थी और छुट्टी कर ली तथा इसके बाद अपनी धमकी और शर्त के मुताबिक उसके अधिकारी ने दीना भाना को नौकरी से निकाल दिया यह सब साहब कांशीराम अपनी आंखों देख रही थी परंतु बी आर अंबेडकर से इस सब के बाद साहब कांशीराम ने दीना भाना को अपने पास बुलाया और जब दीना भाना ने साहब कांशीराम को बी आर अंबेडकर बारे में बताया तो साहब कांशीराम ने दीना भाना को कोर्ट में केस लड़ने को कहा परंतु दीना भाना ने साहब कांशीराम से एक प्रश्न किया कि पैसा कहां से आएगा साहब कांशीराम ने दीना भाना से कहा की तुम्हारा वेतन हर महीने घर पहुंचते रहेगा वह वेतन काशीराम अपनी वेतन से देते रहे परंतु दीना भाना से कहां की जिस दिन तुम दुबारा नौकरी करने आओगे उस दिन काशीराम का इस्तीफा तैयार मिलेगा इसके बाद दीना भाना दोबारा नौकरी पर गए शर्त के मुताबिक काशीराम ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और बहुजन समाज को इकट्ठा करने के लिए निकल पड़े और बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर की स्थापना की और साहब कांशीराम द्वारा दलितों को एकजुट करने स्थापना की और साहब कांशीराम के द्वारा दलितों को एकजुट करने और राजनीतिक ताकत बनाने के लिए देशभर में साइकिल रैली निकाली 1964 में बामसेफ तथा 1970 के दशक में दलित शोषित संघर्ष समिति (DS4) 6 दिसंबर 1981 को स्थापना की इसके बाद साइकिल रैली निकालकर 14 अप्रैल 19 84 को बहुजन समाज पार्टी स्थापना और पहली बार समाज की पार्टी नहीं 1993 में मायावती के द्वारा में मुख्यमंत्री रूप में सत्ता पर हो गई उसके बाद एक में सार्वजनिक तौर पर घोषणा कर कुमारी मायावती को अपना घोषित कर दिया इसके साथ ही साहब कांशीराम के कहने पर मुलायम सिंह ने सपा पार्टी बनाई जिसका असर गैर दलितों को संगठित करना था और यह हो अभी दोनों ने मिलकर सरकार बनाई और नारा दिया गया कि मिले '' मुलायम काशीराम हवा में उड़ गए जय श्री राम ,, परंतु यह मिलाप घने दिन नहीं चला इसके बाद मायावती और अखिलेश ने पूर्ण बहुमत से पांच पांच वर्ष शासन किया अगर किसी दलित मुख्यमंत्री पुरुष की बात करें तो जगन्नाथ पहाड़िया राजस्थान के पहले मुख्यमंत्री थे अगर महिला दलित मुख्यमंत्री की बात करें तो बहन कुमारी मायावती उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनी वह अलग बात है कि आज तक कोई भी दलित प्रधानमंत्री नहीं बना यह और भी अत्यधिक बहुत है कि सामाजिक संगठन से राजनीतिक पार्टी का निर्माण हुआ है उनके चीफ ने केंद्र की सरकार में मंत्री पद जरूर हासिल क्या है बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर और इस पार्टी का कहना है कि एकला चलो की नीति साहब कांशीराम द्वारा बताई गई है पार्टी उसी पर चल रही है बहुजन समाज पार्टी की मुखिया ने समय-समय पर पार्टी गतिरोध में एक नेताओं को पार्टी से निष्कासित क्या है इस बात का तो सही तो पता पार्टी की मुखिया और पार्टी से निष्कासित होने वाले को ही पता है और अधिकतर नेता दूसरी पार्टियों में शामिल हो गई परंतु राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री जयप्रकाश को पार्टी से निष्कासित होने के बाद भी किसी भी पार्टी में नहीं गए साहब कांशीराम की पार्टी के लिए काम और बहन कुमारी मायावती जी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए मैं भी काशीराम के नाम से मिशन चला रहे हैं और कहते हैं कि इस मिशन मैं उनके लिए खुला द्वार है जो बहुजन समाज पार्टी से निष्कासित कर दिए गए हैं अप्रैल 2017 को सहारनपुर दलित और ठाकुरों में संघर्ष हुआ इसमें प्रशासन ने बताया कि सहारनपुर दंगे में भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण का हाथ है परंतु मेरी नजरों में संगठन का 2017 इससे पहले कोई भी राज्य स्तर पर प्रदर्शन नहीं देखा गया किंतु 2017 में जो हुआ सब ने अपनी आंखों से देखा जिसके विरोध में बसपा प्रमुख मायावती ने राज्यसभा में समाज की आवाज न उठाने देने के कारण राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया शायद अंबेडकर के बाद ऐसा पहला कोई दलित नेता है दलितों की उठाने न देने के लिए अपने पद से इस्तीफा दिया हो और चंद्रशेखर ने कहा था कि मैं कभी राजनीतिक बाकी नहीं बनाऊंगा काशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी और मिशन में काम करूंगा और अब चंद्रशेखर आजाद द्वारा आजाद समाज पार्टी के नाम से बना ली गई है और ना ही ये साहब कांशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी मिशन के लिए कान करेंगे बहुजन समाज के लोगों को सकारात्मक विचारों यह तय करना होगा एक पार्टी तो साहब कांशीराम द्वारा बनाई गई है एक पार्टी साहब कांशीराम उनके सपनों पर बनाई गई है परंतु आश्चर्य की बात यह है कि बहुजन समाज के अधिकारों के लिए कौन सी पार्टी वास्तविक की लड़ाई लड़ेगी आजाद समाज पार्टी ठीक उसी प्रकार बनाई गई है जिस प्रकार संविधान निर्माता डॉ बी आर अंबेडकर को पुनर्जीवित करने के लिए साहब कांशीराम के द्वारा बहुजन समाज पार्टी बनाई गई थी परंतु उस समय राजनीतिक रूप से बाबा साहब को पूर्णतः लुप्त दूर कर दिया गया था और किसी भी पार्टी कार्यालय या बेनरो पर बाबा साहब की भी नहीं थी जब साहब काशीराम द्वारा पार्टी बनाकर यूपी में सत्ता हासिल कर ली तब जाकर विपक्षी पार्टियों के कार्यालय बेनरो पर बाबा साहब की फोटो आने लगी परंतु साहब कांशीराम और उनके द्वारा बनाई गई पार्टी अभी तक पूर्ण रूप से जीवित और सुरक्षित है साहब कांशीराम के नाम और सपनों पर पार्टी क्यों जितने भी जितने भी पार्टियां बनी है आने वाले समय में बनेंगे खासकर वे पार्टियां साहब कांशीराम के नाम और सपनों पर बनिया बनाई जाएंगी उन पार्टियों के द्वारा साहब कांशीराम के द्वारा बनाई गई पार्टी की वोट काट कर ही साहब कांशीराम की पार्टी को कमजोर करेंगी जो भी पार्टी साहब कांशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी की वोट काट कर उनकी पार्टी को कमजोर करेगी तो फिर उनके सपनों पूरा कैसे करेगी जो भी आज बहुजन समाज के लोग पार्टी बना रहे हैं और आगे भी पार्टी बनाएंगे शायद वे लोग साहब कांशीराम वो नारा भूल गए हैं कि साहब कांशीराम ने कहा था कि जाओ अपने घर की दीवारों पर लिख दो " हम इस देश के शासक हैं,, परंतु हमारे घरों में ऐसी कोई दीवार नहीं मिली उपरोक्त की पंक्ति को लिख सकें और जब आपको साहब कांशीराम के द्वारा हमारे घरों में दीवार मिली तो और " हमने अपने घर की दीवारों पर लिख दिया इस देश की पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी .......................................................................................................…................ साहब कांशीराम के नाम और सपनों पर पार्टी बनाने वालों यहां एक बात तो सिद्ध हो जाती है कि बहुजन समाज पार्टी बसपा प्रमुख को मुख्यमंत्री बनने से रोक सकते हो परंतु बहुजन समाज में साहब कांशीराम के नाम और सपनों पर पार्टी बनाने वालों को शायद बहुजन समाज की राजनीति का उदय लगता है परंतु उपरोक्त की पंक्ति को ध्यान में रखते हुए जब देश में बहुजन समाज के अंदर पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी बन जाएंगे बहुजन समाज की राजनीति का उदय नहीं राजनीति का अंत होगा अगर वास्तविक सब काशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी और उनके सपनों को साकार करना है तो सभी सामाजिक संगठनों को राज्य स्तर राष्ट्रीय स्तर पर बहुजन समाज पार्टी के लिए कार्य कर बहन जी को प्रधानमंत्री बनाकर संविधान की रक्षा कर बहुजन अधिकारों को जन तक पहुंचाने के लिए बहुजन समाज पार्टी के तले कार्यरत हो लेखक की कलम के दो शब्द उपरोक्त में जो भी लिखने का प्रयास किया है यह दर्शाने की कोशिश की गई है जब तक बहुजन समाज मैं पार्टियां विपक्षी पार्टियों से अधिक बन जाएंगी तो उन्हें वहीं स्थापित हो जाओगे की फूट गैरों राज करो और बहुजन समाज में अधिक से अधिक पार्टी बनाने से बहुजन समाज का राजनीति का उदय नहीं बल्कि अंत होगाक्योंकि साहब कांशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी अभी तक जीवित और सुरक्षित है और जब तक मायावती जीवित है उत्तर प्रदेश में शायद ही कोई दूसरा दलित मुख्यमंत्री और देश का प्रधानमंत्री बने क्योंकि साहब कांशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी और उन्हीं के द्वारा ही सार्वजनिक रूप से घोषित की गई मायावती उत्तराधिकारी जीवित है क्योंकि बहुजन समाज पार्टी और बसपा प्रमुख मायावती बहुजन समाज के खून में हीमोग्लोबिन की तरह सम्मिलित है जिस तरह से मनुष्य के रक्त से हीमोग्लोबिन की मात्रा नष्ट हो जाती है तो मनुष्य भी मृत हो जाता है मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

मंगलवार, 3 मार्च 2020

कलम की ताकत की परिकल्पना मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

कलम की ताकत होती हैं हजारों क्रांति की ताकत से अधिक ताकतवर होती है क्योंकि गुलाम हुए जिस प्रकार किसी देश को आजादी के लिए के लिए क्रांति की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार आजाद होने के बाद उस देश में समता समानता बंधुत्वता न्याय के जनता के अधिकार आदि और लोकतंत्र को बनाये रखने के लिए एक संविधान की जरूरत होती है और संविधान उस कलम के द्वारा ही लिखा जाता है जो कलम हजारों क्रांति की ताकत से अधिक ताकतवर होती है और कलम के रास्ते के द्वारा ही सभी देश में अन्याय के खिलाफ लड़ने की ताकत होती है और कलम के द्वारा ही न्याय दिला कर उस देश की जनता को लोकतंत्र और संविधान पर गर्व करने के लिए उस देश की न्याय प्रणाली महत्वपूर्ण दायित्व निभाती हैं परन्तु उस देश की मीडिया उस देश की न्याय प्रणाली के कार्य का सही विश्लेषण कर जनता तक पहुंचाने में जीवित दिखाई दे और कलम के रास्ते ही भारत में वर्ण व्यवस्था की बेड़ियों काट कर उस वर्ण को अधिकार दिए जिस वर्ण को सदियों से समान अधिकार ना मिले हो वर्ण को समाप्त कर वर्ग बना दिए क्योंकि वर्ग सम्पूर्ण विश्व में पाएं जाते हैं वर्ग तों कभी कम और कभी अधिक होते रहते हैं परंतु वर्ण तो बहुमंजिला इमारत की तरह और बिना सीडी की तरह है ना तो ग्राउंड फ्लोर के ऊपर जा सकता है और ना ही फ्लोर ग्राउंड के नीचे रह सकता है और कलम के द्वारा संविधान लिखकर सदियों की वर्ण व्यवस्था की बेड़ियों काटकर और संविधान के रास्ते चलते हुए कलम का प्रयोग कर उस देश के शासक बन गए हो मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

आजाद भारत का गुलाम नागरिक हूं मैं मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

आजाद भारत का गुलाम नागरिक हूं मैं जब भारत में आर्य दक्षिण भारत से आकर और भारत के मूल निवासियों ( अनार्यों ) पर हमला कर गुलाम बनाकर और भारत में अपने धर्म सनातन धर्म की स्थापना की कुछ सदियों बाद हिण्डस से हिंद और हिंद से हिंदू धर्म बनाकर अपने वर्चस्व का निर्माण किया और चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के रूप में अखंड भारत बनाने का सपना देखा और उसको पूरा किया परंतु हिंदू धर्म की ऊंच-नीच भेदभाव के कारण हिंदू धर्म से समय-समय पर अनेक धर्मों का निर्माण हुआ चाहे वह सिख धर्म हो बुद्ध धर्म हो इस्लाम धर्म हो इसाई धर्म हो इन धर्म का निर्माण होने का कारण एक ही हो सकता है वर्ण व्यवस्था और ऊंच-नीच जात पात आदि जिस कारण भारत रियासतें आपस में ही एक दूसरे को अपने आधीन करने को उतारू होने लगी भारत और भारत के नागरिक एक दूसरे के गुलाम होने लगे जिस कारण 1200 ईसवी के आस-पास भारत पर मुस्लिम आक्रमण हुआ और भारत में इस्लाम धर्म के स्थापना हो गई इस्लाम धर्म वालों ने भारत के वर्ण व्यवस्था में कोई भी परिवर्तन नहीं किया 1600 ईसवी के आस-पास अंग्रेजों द्वारा गुजरात में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापित कर अंग्रेजी शासन की नींव रखी परंतु भारत को अधिकतर अंग्रेजों का ही गुलाम क्यों कहा गया क्योंकि हिंदू धर्म और मुस्लिम धर्म के द्वारा बनाये गए नियमों को अंग्रेजों द्वारा समाप्त कर नए नियमों की नीव रखी गई समान कानून बनाकर सबको शिक्षा अधिकार स्थापित कर दी गई और भारत की जनता से संबंधित वे नियम खत्म कर दिए गए जो भारत की जनता में ऊंच-नीच भेदभाव वर्ण व्यवस्था आदि के आधार पर अन्याय करता हो शायद यही कारण होगा कि भारत को अंग्रेजों का गुलाम कहां गया क्योंकि इस व्यवस्था को किसी और ने समाप्त करने का साहस नहीं किया और इसी को भारत की आजादी की क्रांति का नाम दिया गया और आजादी की क्रांति के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया और 70 साल बाद भी भारत में कुछ जगह आज भी भारत के ही नागरिकों द्वारा भारत के नागरिकों के साथ गुलाम नागरिकों की व्यवहार किया जाता है और लोकतंत्र के सबसे बड़े देश भारत में माननीय श्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारतीय तिरंगे का अपमान किया जाता है  अगर कोई भारत का नागरिक होने के नाते से भारतीय तिरंगे का अपमान नए करने को माननीय श्री प्रधानमंत्री जी को ऐसा ना करने के लिए कहे तो और उस नागरिक को प्रधानमंत्री के ट्विटर से बदले में आजाद भारत में गुलाम कहां जाए तो भारतीय संविधान और लोकतंत्र की हत्या है क्योंकि भारतीय उच्च पद पर विराजमान माननीय प्रधानमंत्री द्वारा भारत के नागरिक को गुलाम कहकर संबोधित क्योंकि भारतीय संविधान में सबको समान अधिकार सबको समान कानून का प्रयोग करने का अधिकार समान है शायद इस पर गोर की जाए तो हमारी न्यायपालिका स्वत ही संज्ञान ले सकती हैं आजाद भारत के गुलाम नागरिकों अंदाजा असम में एन सी आर के आधार पर जनता को बाहर निकाला गया है जिस कारण असस के आन्दोलन शुरू हो गया यह आन्दोलन समस्त भारत में हों रहा है इन ताजी घटनाओं से भी लगाया और अब एन .पी .आर . लाया जा रहा है जो लोग एन .सी .आर . के आधार पर डिटेंशन कैंप में बन्द है उन लोगों को 50 वर्ग फुट मैं 200 महिलाएं रहेंगी इनके लिए दो बाथरूम और दो शौचालय तथा बाकी सुविधाओं का भी इन सुविधाओं से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह स्थिति जेल से भी अधिकतर होगी आखिर और सबसे अधिक मूर्ख लोग हमारी न्याय प्रणाली में बैठे हैं जो हाई कोर्ट के न्यायाधीश यह फैसला दे रहे हैं कि वोटर आईडी पैन कार्ड आधार कार्ड जमीन की रजिस्ट्री कागज आदि नागरिकता के सबूत नहीं माने जाएंगे जबकि यह फैसला देने वाले लोग उपरोक्त के आधार पर नौकरी पर स्थापित हुए हैं पहले इन लोगों को नौकरी से हटा कर इन लोगों को डिटेंशन कैंप भेजा जाए ताकि पता चले गुलामी क्या है   यह स्थिति जेल से भी अधिक कष्टदायक होगी इन लोगों को डिटेंशन कैंप में कब तक रखा जा सकता है जब पूरे देश में एन .आर .सी ,एन .पी. आर ,केस आदि उपरोक्त के आधार पर लागू हो जाएगी बाहर कम से कम 6 महीने और अधिक सीमा का पता नहीं और इन लोगों को उन देशों में भेज दिया जाएगा जहां सिर्फ कार्य करने के लिए इंसानों की आवश्यकता होती है वहां पर इन लोगों को गुलाम बनाकर रखा जाएगा इसका सीधा मतलब है मनुष्य की खरीद फरोख और सदियों पुराना रास्ता फिर से खुल जाएगा और आजाद भारत में फिर से मनुस्मृति लागू हो जाएगी और फिर कहलाएगा आजाद भारत का एक गुलाम नागरिक हूं मैं लेखक की कलम के दो शब्द उपरोक्त में जो भी लिखा गया है एक खास ख्याल रखा गया है कि भारत के किसी भी उच्च पद पर विराजमान राजनेता , उच्च पदाधिकारी या अन्य किसी धर्म या धर्म से संबंधित किसी भी मनुष्य की भावनाओं को आहत ना करने किसी भी प्रकार की कोशिश नहीं की गई है परंतु संविधान से पहले और संविधान के बाद जो होने लगा है उस पर मानवता के अधिकारों के लिए संविधान में मिले अधिकारों को इस लेख में प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है और जो गुलामी का शब्द भारत पर सदियों से कलंकित उस शब्द का संवैधानिक तरीके से विरोध करने का प्रयास किया है ‌मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

मुजरिम का कातिल कोन मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

मुजरिम का कातिल कोन मुनिराम गेझा ( एक और विचारक ) इस संसार में मनुष्य द्वारा बनाए गए समुदाय और समुदाय से धर्मों का निर्माण हुआ होगा जिसका उद्देश्य सिर्फ इतना होता था कि वह अपने सकारात्मक व्यक्तित्व से उस समुदाय के जीवन से सम्बंधित मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति उन के जीवन की रक्षा करता है जिस कारण वह समुदाय उसको अपने जीवन का आदर्श और पालनहार मानने लगता है और इस व्यक्तित्व से ही विभिन्न व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों निर्माण होता है इसी बीच धार्मिक - आस्तिक , नास्तिक -अ धार्मिक , वास्तविक - वेज्ञानिक युगो का आरम्भ हुआ और इन विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों के समुदाय में एक दूसरे को अपने में मिलाने की अभिलाषा जाग्रत होने लगी और यही से युद्ध आरम्भ होने लगें होंगे जीत गया ( राजा ) और जो हार गया (गुलाम) और यही से वर्ण व जातियों का निर्माण हुआ जिस समुदाय की जनता को जीत मिली वह उच्च जाति और जिस समुदाय की जनता को हार मिली शूद्र , नीच और हारे हुए समुदाय के अधिकारों को पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिए वर्णों का निर्माण कर गुलामी को जन्मसिद्ध अधिकार स्थापित कर दिया गया इसी गुलामी में अमानवीय अत्याचार की अनगिनत इमारत बन सारी हदें गुजर गयी और राजतंत्र बदलते गए परन्तु अमानवीय अत्याचार की सीढ़ियां घुटने की बजाय बढ़ी धर्म आधारित , वर्ण आधारित , जाति आधारित , परंतु वर्ण के खिलाफ किसी भी शासक ने करवट नहीं बदली जब अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाया और कुछ समय बाद भारत में कानून बनाकर न्याय , शिक्षा , उधोगिक क्रान्ति बीज रोप दिया इन सब को पूर्ण रूप से स्थापित करने के लिए उच्च श्रेणी के आयोग की स्थापना हुई सबको न्याय , शिक्षा , रोजगार व कड़े कानून स्थापित कर अधिकार स्थापित कर दिये गए। और अमानवीय अत्याचार पर अधिकतर प्रतिबंध लगा दिए गए थे और जिस शूद्र वर्ण अमानवीय अत्याचार के जुल्म को सदियों से ढो रहा था अब अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून से उसको उनके अधिकार मिल रहें थे यह कार्य साइमन कमीशन बहुत ही तेज़ी और सूझबूझ से कर रहा था साइमन कमीशन के कानून के बढ़ते प्रभाव को अंग्रेजों को भारत से भगाने का निर्णय लिया गया जिसका कारण तीनों वर्णों से लेकर साइमन कमीशन द्वारा शूद्र वर्ण को अधिकार दिए जा रहे थे और अंग्रेजों को भारत से भगाना जाने लगा जिसको नाम दिया भारत की आज़ादी की क्रान्ति भारत को अंग्रेजों से आजादी चाहिए थी परंतु भारत के शूद्र वर्ण को अंग्रेजों से ज्यादा मनुस्मृति और मनुवाद , पाखंडवाद , धर्मवाद ,उच - नीच , जात - पात , भेद - भाव से आजादी चाहिए थी अंग्रेजों के बाद बहुजन समाज के समस्त अधिकारियों का रास्ता भारतीय संविधान हैं। परन्तु भारतीय संविधान में अमानवीय अत्याचार के खिलाफ इतने कड़े कानून कानूनों का प्रावधान है फिर भी आजाद भारत में आज भी मुम्बई में गन्ने की छिलाई के लिए एक साहूकार द्वारा 35 - 45महिलाओ के पर दबाव बनाकर प्राईवेट पार्टस निकलवाने को मजबूर किया गया , गुजरात का ऊणा काण्ड , राजस्थान में पति-पत्नी को पति के सामने महिला के बलात्कार करना , घरों में आग लगा कर मार देना , मध्यप्रदेश में रास्ते किनारे सोचालय करने के कारण दो बच्चों की मौत के करना , या यू पी में सहारनपुर की घटना या अम्बेडकर और बुद्ध की कथा करने बहुजन समाज पर हमला करना , हरियाणा में बहुजन समाज के हाथ पैर काटना और राजस्थान के नागौर में युवक के साथ मात्र 100 रपये चोरी का आरोप लगा कर सात लोगों द्वारा एक युवक के प्राइवेट पार्ट में पेट्रोल डालना आदि ना जाने समस्त भारत में रोज कितनी घटना होती है जो पत्रकारिता मिडिया नहीं दिखाती है जब उन घटनाओं पर शोसल मिडिया के माध्यम से शासक , प्रशासन के लिए एक आन्दोलन का रूप लेती है जब जाकर कुछ कार्यवाही होती है फिर भी पीड़ित को ना तो उचित सहायता और उचित धाराओं में कार्यवाही का ना होना। ऐसी घटनाओं से मन विचलित होना लाजिमी है मेरे मन में बार बार एक ही सवाल और मुझे परेशान कर रहा था आखिर कब ऐसी घटनाओं का अन्त होगा क्योंकि कुछ ही समय की कारावास के बाद आरोपी उसी खुली हवाओं में और घरनित घटनाओं को अनजाम देने के लिए आ जाते और आरोपी मनविचल करने वाली घटनाओं के आरोपी कारावास के बाद भी शान से जी सकते हैं तो ऐसे घटनाओं के आरोपी की मृत्यु करने के बाद हम क्यों नहीं और यह कार्य करने के लिए उन्हीं लोगों को तैयार करना होगा जिन लोगों के साथ उपरोक्त घटनाएं हो चुकी है क्योंकि स्वाभिमान और इज्जत से बडी - जेल नहीं और बहुजन समाज की बहनों से भी यही कहना चाहूंगा कि जिनके साथ बलात्कार जैसी घटनाएं हो चुकी है अगर कोई आप की इज्जत पर हमला करें तो आप उसकी ज़िन्दगी पर हमला कर दो पुनः स्वाभिमान और इज्जत से बडी जेल नहीं और हों ऐसे संगठन का निर्माण उपरोक्त जेसी घटनाओं के आरोपी को कानून की गिरफ्त से पहले या बाद में सिर्फ मृत्यु और कह दो मुजलिम का कातिल मैं हूं यह कार्य जिला , राज्य ,ही नहीं देशव्यापी हो क्योंकि जब एसी घटनाओं को अनजाम देकर और सजा पाकर भी आरोपी सर उठाकर जीने का साहस करते हैं। तो तुम क्यों नहीं और तुम अपनी इज्जत की रक्षा और मान स्वाभिमान के बचाने के लिए आरोपी की मृत्यु भी क्यों ना करनी पड़े और सजा के बाद समाज में सर उठाकर कर स्वाभिमान के साथ जियो मुझे और मेरे लेख को बेसब्री से इंतजार होगा लोग फूलन देवी के कार्य को (नैशनल स्वाभिमान फूलन देवी ओरगेनाईजेशन ) स्तम्भ बनाएगा अर्थात मुजरिम का कातिल कोन लेखक की कलम के दो शब्द सत्तर सालों में भी भारत की सत्ता शासन और न्याय प्रणाली यह साबित करने का प्रयत्न करती है कि अपराध समाप्त हुआ है उसके अगले ही कुछ समय बाद ऐसी घटनाएं घटित हो जाती है जिसमें भारत को विश्व पटल के मंच पर शर्मशार होना पड़ता है और सबके मनविचल हों जातें हैं परंतु ( एक और विचारक ) तो कलम विचलित हो गई और मेरे मन ने लिखा उपरोक्त मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

संविधान को समझने के लिए डिग्रियों से ज्यादा शिक्षित होना जरूरी है मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

संविधान को समझने के लिए डिग्रीयों से जायदा शिक्षित होना जरूरी है।- मुनिराम गेझा Muniram February 15, 2020 0 Hindi, आलेख जब भारत में मनुस्मृति और वर्णों के आधार पर न्याय वे अधिकार मिलते थे तब वर्तमान की शिक्षा पद्धति की कोई संरचना नहीं थी या यूं कहें कोई आवश्यकता नहीं थी वह बात अलग है की सम्राट अशोक के शासन काल में नालंदा विश्वविद्यालय जैसे की स्थापना हो चुकी थी यह बात बिल्कुल अलग है की सम्राट अशोक जैसे महान व्यक्तित्व वाले मनुष्य का भारत की जमीन पर जन्म हुआ परंतु वह एक शूद्र शासक था उस महान शासक ने भारत को अखंड भारत बनाया और बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित किया पुष्यमित्र शुंग ने अशोक के उत्तराधिकारी की हत्या कर बौद्ध धर्म को नष्ट करने लगा जिसके बाद ऐसे विधान की रचना हुई जिसमें ब्राह्मण ,छत्रिय, वेशय, शूद्र चार वर्णो का आधार देकर मनुस्मृति की रचना हुई मनुस्मृति की रचना सुन काल में हुई थी इन चारों वर्णों के अधिकार जन्मसिद्ध अधिकार स्थापित कर दिए गए जैसे ब्राह्मण -शिक्षा , क्षत्रिय – युद्ध , वेशय- व्यापार इस व्यापार में भी मनुष्य की खरीद- परोख भी शामिल थी शुद्र वर्ण के लोगों तो इन तीनों वर्णों की सिर्फ गुलामी करने का जन्मसिद्ध अधिकार स्थापित कर दिया गया और सभी वर्ण की महिलाओं को संभोग की वस्तु बना दिया गया यह व्यवस्था सदियों तक चलती रही और दलितों की खरीद – परोख के साथ शूद्रों की महिलाओं को ऊपरी बदन पर कपड़े पहनने का भी अधिकार नहीं था इस शुद्र वर्ण की महिलाओं को इन तीनों वर्णों के पुरुषों के सामने अपना ऊपरी बदन खुला रखना पड़ता था ऐसा ना करने पर उन्हें सारी शोषण और यातनाएं से काफी दिनों तक पीड़ित किया जाता था जिस कारण केरल की एक घटना में एक शूद्र जवान लड़की को जब उसको खुलें बदन दिखाने को मजबूर किया गया तो उसने अपने दोनों स्तनों को काट कर उन मनुवादी के सामने रख दिए जिन्होंने खुला बदन और दिखाने मजबूर किया परंतु अधिक रक्त बहने के कारण कुछ ही समय बाद उसकी मृत्यु हो गई थी यह है घटना केरल के सभी लोगों की जुबां पर होती है शूद्रों की गुलामी कभी न समाप्त होने वाली थी परंतु इस घटना ने समस्त शुद्र के हाथों में क्रांति और शोषण के खिलाफ एक मशाल पकड़वाई थी समस्त भारत में न जाने ऐसी अशंख घटनाओं का जन्म हुआ होगा वैसे तो कोई हिंदू धर्म नहीं है आज के हिंदू या यूं कहें की सनातन धर्म की वर्ण व्यवस्था में विभिन्न प्रकार की ऊंच-नीच जात पात की खाई और आपस की फूट देखकर भारत पर आक्रमण होने लगे होंगे जब भारत पर मुसलमानों का शासन हुआ तो उसके विभिन्न कारण रहे होंगे (1) पहला वर्ण व्यवस्था – इस वर्ण व्यवस्था में चार वर्णों को एक साथ कभी मिलने या बैठने नहीं दिया आज भी जीवित है (2) ब्राह्मण वर्ण – ब्राह्मण वर्ण को शिक्षा देने का अधिकार था और शिक्षा ब्राह्मण क्षत्रिय या शासक वर्ग के लिए थी (3) वेशय वर्ण – वैश्य वर्ण को केवल व्यापार करना था इसमें वर्ण मैं शूद्र वर्ण के पुरुष तथा महिलाओं का भी खरीद परोख शामिल था (4) शूद्र वर्ण – शूद्र वर्ण को इन तीनों वर्णों की गुलामी करना था जो मनुस्मृति ने गुलामी करना जन्मसिद्ध अधिकार बना दिया था जिस कारण किए चारों वर्ण कभी एक साथ ना खड़े हो सके और ना कभी एक साथ खा सकें और ना कभी एक साथ युद्ध कर सके और भारत एकाएक गुलाम होता चला गया यहीं से भारत को गुलामी का दाग लगा पहले मुस्लिम शासन हुआ इसके बाद अंग्रेजों का शासन हुआ परंतु हिंदू नीति द्वारा मुस्लिम शासन को नहीं उखाड़ा गया क्योंकि मुस्लिम शासकों द्वारा वर्ण व्यवस्था पर कोई भी किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाया गया परंतु अंग्रेजों द्वारा वर्ण व्यवस्था के द्वारा होने वाली गुलामी के षडयंत्र ऊपर प्रतिबंध लगाकर शुद्र को वह सब अधिकार दिए जाने लगे जो अधिकार उन्हें सदियों से नहीं मिल रहे थे और अंग्रेजों ने शुद्र वर्ण को अपने कारखानों के लिए आकर्षित किया और शिक्षा का द्वार खोल दिया जब अंग्रेजों को यह लगा कि अब हमें यहां से जाना होगा जब तक अंग्रेजों ने शुद्र को संपूर्ण अधिकार दे दिए आजाद भारत को चलाने के लिए भारत के लोगों से अंग्रेजों ने एक ऐसा आधार मांगा की भारत के आजाद लोगों को क्या क्या अधिकार होंगे और भारत की जनता का प्रतिनिधित्व किस प्रकार होगा भारत की जनता का भिन्न – भिन्न समुदाय द्वारा प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों द्वारा संविधान सभा की स्थापना हुई जिसके अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद कथा संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ बी आर अंबेडकर को नियुक्त किया गया कुल मिलाकर इस सभा में 7 लोग थे जिनके द्वारा ऐसे संविधान की रचना की गई कि विभिन्न धर्मों के और विभिन्न जातियों के लोगों को मौलिक अधिकार दिए गए थे भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष संविधान तैयार किया गया भारतीय संविधान के 100 वर्ष पूर्ण होने पर विश्व में सर्वश्रेष्ठ भारतीय संविधान साबित हुआ संविधान में दिए गए अधिकारों में से एक शिक्षा का मौलिक अधिकार है जिसकी वजह से अपने अधिकार और शोषण के खिलाफ सरकार की नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतर कर अपनी अधिकार मांगते हैं परंतु अधिकार मांगने या बचाने के लिए ” संविधान को समझने के लिए डिग्रियों से जायदा जरूरी है क्योंकि भारतीय संविधान इतना सरल है कि भारत की जनता को अपने अधिकारों को मांगलिया बचाने के लिए डिग्रियों से जायदा शिक्षित होना जरूरी होगा क्योंकि दसवीं पास, बारहवीं पास व्यक्ति भी भारतीय संविधान को अच्छी तरह पढ़कर समझ सकता है” क्योंकि यह हिंदी भाषा में भी स्पष्ट है जिस जिस तरह भारत की जनता में शिक्षा का प्रसार बढ़ता जा रहा है ठीक उसी प्रकार भारत की जनता अपने अधिकारियों समझने और बचाने के लिए भारत की जनता उस किताब तक पहुंचेगी जिसमें उसके अधिकार सुरक्षित हैं और 25 – 11 – 2016 से 5 – 02 – 2020 दिनों में उस किताब की बिक्री 70 सालों में हिंदी बार क्यों इतनी बढ़ गई भारत सरकार द्वारा भारतीय संविधान में धर्म के आधार पर CAB , NCR , NPR , जैसे कानून लाए गए और असम जैसे राज्यों में उपरोक्त कानून जैसे धर्म पर आधारित कानून लागू किए गए वही 19 लाख भारत की जनता भारत के नागरिक होते हुए भी यह साबित नहीं कर सकी की वह भारतीय नागरिक हैं और 19 लाख में 15 लाख दलित आदिवासी लोग हैं जो भारत के मूल निवासी हैं और 400000 लोग मुस्लिम है इन मुस्लिमों को वहां की सरकार द्वारा डिटेंशन कैंप भेज दिया गया इनमें कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भारत सरकार के आर्मी एयर फोर्स आदि मैं अपनी सेवा देकर रिटायर हो चुके हैं यूं कहूं तो इन लोगों को फिर गुलाम बना लिया गया है उनकी गुलामी की जंजीरों को काटने के लिए उन धर्मनिरपेक्ष विचारधाराओं के लोगों को लड़ना होगा जो उपरोक्त कानून की की हद से बाहर या अभी बचे हुए हैं उनके तथा अपने अधिकारों को बचाने के लिए एक ही किताब रास्ता दिखा सकती है यह वह किताब है जो किताब अधिकतर वकीलों के पास पाई जाती है यह किताब भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने हाथ में पाने की जीत होगी तो सभी ग्रंथों से जायदा एक ही किताब की छपाई में बिक्री होगी “जिस किताब में भारत की जनता जनता के अधिकारों का वर्णन कर उनको सुरक्षित करती है और तब जनता के द्वारा जनता के लिए चुनी गई सरकार द्वारा भारत की जनता के अधिकारों को सदियों तक सुरक्षित रखने का संकल्प लेती हो और उसी किताब को हाशिए पर रखकर अधिकार को खत्म किए जा रहे हो जिस किताब से सत्ता में का काबिज हो गई तब जनता मी उसी किताब को खरीदने की होड़ लगेगी अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए धर्म आधारित या मनुवाद आधारित सरकार को हटाकर उस किताब की रक्षा करना भारत की जनता का ही दायित्व है उस किताब का नाम कोई धार्मिक वेद , पुराण , कुरान , रामायण , महाभारत , ग्रन्थ आदि नहीं है। बल्कि उस किताब का नाम भारतीय संविधान है।” लेखक की कलम के दो शब्द उपरोक्त में जो भी लिखा गया है संविधान को समझने के लिए डिग्रियों की आवश्यकता नहीं शिक्षित होना है और जब धर्मों के आधार पर अधिकार और न्याय मिलते हैं तो आपस में स्वयं लड़ते हैं परंतु भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्ष है इसलिए 70 सालों में पहली बार अपने अधिकारों को बचाने के लिए भारत की जनता में उस किताब को खरीदने की होड़ मची है धर्म ग्रंथों से अधिक भारतीय संविधान प्रतिलिपि छपने लगी हैं मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

मंगलवार, 28 जनवरी 2020

लोकतंत्र में प्रदर्शन सवेधानिक अधिकार है। जनता का मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

लोकतंत्र में प्रदर्शन सवेधानिक अधिकार है। जनता का – मुनिराम गेझा( एक और विचारक ) आज के वर्तमान में सभी देशों एक प्रकार के गति अवरोध का सामना कर रहे हैं जिस कारण कभी ना कभी किसी ना किसी देश में कहीं ना कहीं अप्रिय घटना का शिकार होना पढ़ रहा है जिसमें निर्दोष लोग अपनी जान गवाते हैं जिनका कोई कसूर नहीं होता है भारत के दैनिक जागरण 23-08-2019 के अखबार के माध्यम से मैंने पड़ा की वे जन्मजात नागरिकता को खत्म करने की तैयारी है जिनके माता अमेरिकी नागरिक नहीं है और उनकी संतान के पास अमेरिका की जन्मजात नागरिकता है (अर्थात जिसनेअमेरिका में जन्म लिया है) जब भी किसी देश से दूसरे देश में गए व्यक्तियों तथा उनसे जन्मी संतान उसी देश के जन्मजात नागरिकता और अधिकार प्राप्त होते हैं जिनके माता पिता उस देश के नागरिक नहीं होते है। स्पष्ट कहां जाए तो अमेरिका उन लोगों या बच्चों की जन्मजात नागरिकता खत्म करेगी जिनके माता पिता अमेरिकी नागरिक नहीं है आज तक जो भी व्यक्ति अपने देश से किसी दूसरे मैं गए हैं उस देश के आर्थिक औद्योगिक वैज्ञानिक दृष्टि से उस देश की समृद्धि में अपना विशेष योगदान देते हैं क्योंकि दूसरे देश में वही व्यक्ति जाते हैं जिस देश की सरकार उनके लिए पर्याप्त कार्यपद्धती मुहैया नहीं करा पाती है जिससे अपने ज्ञान को अपने देश के धरातल पर स्थापित नहीं कर पाते और दूसरे देश की सरकारें नए-नए अविष्कारों के लिए पर्याप्त सामग्री मुहैया कराती है हर कोई व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं पूर्ति के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान तथा एक देश से दूसरे देश में जाकर जीवन व्यापन करता है यह सदियों पुरानी परम्परा है चाहे तो हम विभिन्न प्रकार के इतिहासों का अध्ययन कर सकते हैं। जन्मजात नागरिकता खत्म करने से पढ़ने वाला प्रभाव अगर हम इतिहासो का अध्ययन करें तो सभी देशों से विभिन्न देशों मैं जाते रहे हैं और उनसे जन्मे संतान उसी देश की जन्मजात नागरिकता के पहचान के रूप में अपने भविष्य का निर्माण और उस देश के भविष्य का निर्माण करती है अगर अमेरिका की वर्तमान सरकार या भविष्य की कोई भी सरकार ऐसा करती है जिनके माता पिता अमेरिका के जन्मजात नागरिक होकर अमेरिका के नागरिक नहीं है उन जन्मजात नागरिकता व्यक्तियों की नागरिकता खत्म करना यह कदम केवल उन जन्मजात के लिए ही नहीं बल्कि उन जन्मजात अमेरिका के लोगो के लिए घातक साबित होगी जिनके माता-पिता सदियों से अमेरिकी है वास्तविक में कहूं तो उस देश के भविष्य का निर्माण की उन सभी लोगों ने मिलकर रखी है चाहे वर्तमान में है चाहे वे अमेरिकी हो या या जन्मजात अमेरिकी और जिनके माता-पिता अमेरिकी नहीं है ऐसा फैसला हर उस देश के लिए तथा उस देश के भविष्य के लिए भी घातक साबित होगा जो भी देश के अनीतिगत फैसले लेगा वे कौन लोग होंगे जिनकी जन्मजात नागरिकता खत्म होगी जिन लोगों की जन्मजात नागरिकता खत्म होगी एक वर्ग के दायरे में आएंगे चाहे वे किसी भी उम्र के होंगे अमेरिका के जन्मजात लोगों के अधिकारों तथा जन्मजात नागरिकता पर विचार करते हैं वे दोनों व्यक्ति जो एक ही देश के होंगे और उनकी संतान के पास अमेरिका की जन्मजात नागरिकता होगी और उनकी जन्मजात नागरिकता भी समाप्त हो गई होगी जब उनकी नागरिकता वही देश खत्म कर देगा जिस देश में उनका जन्म हुआ है तो और कोई देश उनको नागरिकता देने को तैयार नहीं होगा क्योंकि उसमें तो उनका जन्मजात नागरिकता आशिक करने का अधिकार भी नहीं होगा जिस देश के उनके माता पिता हैं परंतु उस देश में उनका जन्म नहीं हुआ है जिस देश के उनके माता पिता नागरिक हैं दोनों व्यक्ति अलग अलग देश के हो या दोनों में कोई एक अमेरिकी नागरिक या जन्मजात नागरिक हो उन लोगों की संतान को कौन नागरिकता देगा जिनके माता-पिता कोई एक अमेरिकी नागरिक होगा जिनकी संतान के पास जन्मजात नागरिकता का अधिकार भी नहीं होगा और अमेरिका पहले ही उनकी संतान की जन्मजात नागरिकता समाप्त कर चुका है जिनके माता-पिता अमेरिका का नागरिक नहीं है और उनकी संतान अमेरिका की जन्मजात नागरिकता के अधिकारी थी कौन देगा नागरिकता जिन लोगों की नागरिकता जन्मजात नागरिकता के आधार पर अमेरिका नागरिकता समाप्त करेगा जोकि सभी जन्मजात नागरिकता का हवाला देकर नागरिकता समाप्त जन्मजात नागरिकता और बंदी बनाए गए शरणार्थी यह तो पता नहीं की कब से जन्मजात वाले अमेरिका के व्यक्तियों की नागरिकता समाप्त होगी यह फैसला प्रथम विश्व युद्ध से वर्तमान में सभी ऐसे व्यक्तियों पर लागू होगा जिनके माता पिता अमेरिकी नहीं बल्कि अमेरिका के जन्मजात नागरिक हैं या पिता माता अमेरिकी नागरिक है या यह फैसला भविष्य की किसी तारीख से लागू होगा बंदी नहीं गुलाम बना लिए शरणार्थी अमेरिका में उन सभी शरणार्थियों को बंदी के नाम पर गुलाम बनाए गए लोगों पर नए नियम के बहाने उनको अधिक कमजोर कर उनको गुलाम बनाया जाएगा और उन पर अधिक अत्याचार वही लोग करेंगे जो अमेरिका के सदियों से अमेरिकी नागरिक कहने वाले लोग हैं यह नीति भारत के वर्ण व्यवस्था पर अमेरिका में भी चलने लगेगी जब भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को अमेरिका से लिया गया है और अब अमेरिका अपने यहां वर्ग व्यवस्था मैं भारत के वर्ण व्यवस्था जैसा नियम स्थापित करने जा रहा है अमेरिका में एक गृह युद्ध की आग लग जाएगी। क्योंकि यह कदम अमेरिका का संयुक्त राष्ट्र की शक्ति को खत्म करा सकता है क्योंकि जब 40 % जन्मजात अमेरिकी नागरिक जिनके माता पिता अमेरिकी नागरिक थे या है और 10% बंदी नहीं गुलाम बनाए गए शरणार्थी लोगों द्वारा अपने अधिकार और नागरिकता के अधिकार के एक ऐसे नये (N.D.R.P) अंतरराष्ट्रीय जन्मजात नागरिकता संगठन का निर्माण होगा और अपने अधिकारों के लिए उपरोक्त नाम या अन्य कोई नाम से अधिकारों तथा नागरिकता समाप्त या खत्म होने के विरोध में प्रदर्शन करेगा या करने लगेगा देश की वर्तमान सरकार अपने जन्मजात नागरिकता अमेरिकी नागरिकता और अधिकारों की मांग करेगा तो सरकार प्रदर्शन कार्यों पर विभिन्न प्रकार का बल प्रयोग और कुछ लोगों को फिर बंदी बना लिया जाएगा परंतु यह प्रदर्शन रुकने तथा झुकने का नाम नहीं लेगा और देश में चुनाव का समय आ जाएगा तो कुछ पार्टी द्वारा जन्मजात नागरिकता और बंदी बनाए गए शरणार्थी को भी नागरिकता देने का वायदा करेगी और जिस पार्टी ने जन्मजात नागरिकता खत्म करने का वायदा किया था और उस पर कार्य करेगी तो प्रदर्शन व्यक्तियों का प्रदर्शन और अधिक तेज वह रोता भाव का हो जाएगा जिसमें कुछ व्यक्तियों को अपनी जान गवानी पड़ेगी यहां जान गवानी कोई नई बात नहीं होगी। क्योंकि जब “जब किसी देश या किसी स्थान की मैं प्रणाली बिगड़ती है तो एक नई क्रांति का जन्म होता है” मुनिराम गेझा (एक और विचारक) की बात से अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा समर्थन करते है और अमेरिका अपने यहां नए संप्रदायिक प्रदर्शन को जल देगा ठीक उसी तरह जिस तरह भारत में चुनाव के समय धर्म और जाति विशेष हो जाते हैं और अमेरिका में अमेरिकी जन्मजात नागरिकता जिनके माता पिता अमेरिकी नागरिक नहीं है और जिनके माता-पिता अमेरिका नागरिक हैं और यह संप्रदाय कभी समाप्त होने वाला नहीं होगा और जब जब अमेरिका में चुनाव होंगे तब तब दो टगु बनेंगे एक जन्मजात नागरिकता को ज्यों का त्यों बनाए रखने वाला होगा और दूसरा जन्मजात नागरिकता को खत्म करने वाला होगा और अमेरिका में अमेरिका की जनता भी अमेरिका के विकास से जायदा अमेरिकी जन्मजात नागरिकता और अमेरिकी नागरिकता पर विशेष माना जाएगा अमेरिका के लिए यही बेहतर होगा की अमेरिका में किसी ऐसी पार्टी को सत्ता में नहीं आने दे जिससे जन्मजात अमेरिकी नागरिकता के बीच संप्रदायिकता की नींव रखी जाए क्योंकि जब 40 से 50% जो व्यक्ति अपने अधिकारों को बचाने के लिए हथियार उठा लेगा तब इन लोगों को कोई आतंकी संगठन घोषित कर दिया जाएगा ये वे व्यक्ति होंगे जो जन्मजात नागरिकता के आधार पर उनके अधिकार और नागरिकता खत्म हो चुकी होगी और इनके साथ वे शरणार्थी लोग भी होंगे जिन्हें बंदी नहीं बुला बना लिया जाएगा और अमेरिका के लिए सबसे काला दिन साबित होगा जब एक ऐसे संप्रदायिक का जन्म होगा और यह संप्रदायिकता कभी खत्म नहीं होगी यह भारत की तरह अमेरिका में हिंदू मुस्लिम और जाति और धर्म की तरह फैलती रहेगी क्रांति भी किसी भी राजा के अनीतिगत फैसलों के करण रोज शुरू होता है और जब विरोध राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच जाता है तब विरोध एक क्रांति करो हो जता है लेखक की कलम से दो शब्द मुझे यह मालूम है कि मैंने जो इस लेख में लिखा है उस देश के संसद की नीतियों के बारे में लिखा है जो देश संयुक्त राष्ट्र शक्ति का मालिक है जिसने इराक ईरान आदि देशों पर प्रतिबंध लगा सकता है परंतु किसी के विचारों पर नहीं मुनिराम गेझा (एक और विचारक)

शुक्रवार, 24 जनवरी 2020

मेरे मन की बात भारत के संविधान के साथ मुनिराम गेझा( एक और विचारक )

मैं अपने मन की बात खोल रहा हूं! मैं आजाद भारत बोल रहा हूं! मैं मनुस्मृति और पाखंडवाद को छोड़ रहा हूं!! मैं अपने मन की बात खोल रहा हूं! मैं अंबेडकर का ज्ञान बोल रहा हूं! मैं इस भारत में शिक्षा का अमृत घोल रहा हूं!! मैं अपने मन की बात खोल रहा हूं! मैं भारत का संविधान बोल रहा हूं! मैं जन जन के घर पहुंच रहा हूं!! मैं अपने मन की बात खोल रहा हूं! मैं जिस जन जन को पढ़ रहा हूं! मैं अधिकार सारे जन जन को बता रहा हूं!! मैं अपने मन की बात खोल रहा हूं! मैं प्रस्तावना में ना जाति ना धर्म बांट रहा हूं! मैं भारत के लोग तुम्हें बता रहा हूं!! मैं अपने मन की बात खोल रहा हूं! मैं वर्ण व्यवस्था की बेडियो को काट रहा हूं! मैं शूद्र वर्ग के साथ इस अबला नारी को भी शासक भारत का बना रहा हूं!! मैं अपने मन की बात खोल रहा हूं! मैं लोकतंत्र का बीज बोल रहा हूं! मैं समता, समानता, और बंधुत्व के अधिकार के तोल रहा हूं!! मैं अपने मन की बात खोल रहा हूं! मैं भारत का संविधान बोल रहा हूं! मैं धर्म ग्रंथों को पीछे छोड़ रहा हूं!! मैं अपने मन की बात खोल रहा हूं! मैं मनु और पाखंडवाद की कमर तोड़ रहा हूं! मैं अब शादियों में भी पहुंच रहा हूं!! मैं अपने मन की बात खोल रहा हूं! मैं एक विचार की कहानी बोल रहा हूं! मैं थोड़ी थोड़ी मुझे बानी बोल रहा हूं!! मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

गुरुवार, 16 जनवरी 2020

कलम हों या हथियार हों( मुनिराम गेझा एक और विचारक )

कलम या हथियार हो कलम हो या हथियार हो बस बदलें का इंतकाम हो बदल नहीं सकता इंतकाम का इरादा मेरा जहां छिन गया मेरा अधिकार हो ।। गेर कलम हथियार उठाया बदलें का ये अब दौर है अब मैंने ठाना बदले का इंतकाम कमाना है जहां छिन गया मेरा अधिकार हो।। हे मात पिता तुमसे माफी मांगू हथियार के शिवा कोई साथी मेरा जहां छिन गया मेरा अधिकार हो।। नोकरी नहीं अब इंतकाम रास्ता मेरा गेर कलम जब उठा लिया हथियार हो लोट नहीं सकता दोबारा रास्ते पे उस पर जहां छिन गया मेरा अधिकार हो
सामाजिक एवं अन्य सामाजिक विचार मुनिराम गेझा (एक और विचार)
सामाजिक एवं अन्य सामाजिक विचार मुनिराम गेझा (एक और विचार)

सन्धि से राष्ट्रीयकरण और राष्ट्रीयकरण से निजीकरण से फिर राष्ट्रीयकरण की ओर। मुनिराम गेझा( एक और विचारक )

सन्धि से राष्ट्रीयकरण ओर राष्ट्रीयकरण से निजीकरण से फिर राष्ट्रीयकरण की ओर-मुनिराम गेझा HomeHindi संधि से राष्ट्रीयकरण और राष्ट्रीयकरण से निजीकरण से फिर राष्ट्रीयकरण ओर-मुनिराम गेझा सिन्धि से राष्ट्रीयकरण और राष्ट्रीयकरण से निजीकरण से फिर राष्ट्रीयकरण ओर-मुनिराम गेझा सन्धि से राष्ट्रीयकरण और राष्ट्रीयकरण से निजीकरण से फिर राष्ट्रीयकरण ओर-मुनिराम गेझा Muniram October 30, 2019 2 Hindi, इतिहास इस भारत के इतिहास में भारत देश को अशोक के बाद भिन्न-भिन्न छोटे-छोटे रजवाड़ों तथा राज्य में बटा और भिन्न-भिन्न राजा हुए अलग अलग नीतियां स्थापित के गई जिन राजाओं की नीति समान न्यायहीन रही होंगी और उनके राज्य का पतन आरंभ होने लगा होगा जिस कारण उन राजाओं को गुलाम बनाया गया होगा और उनके साथ उन राजाओं का पतन होना निश्चित था जिन राजाओं की नीति न्याय समानता कार्य प्रणाली थी और उन पर अनेक आपका मन हुए होंगे परंतु वर्ण व्यवस्था बनी रही । इसके विरोध में अनेक विद्वानों ने आवाज उठाई और संघर्ष किया परंतु कामयाबी नहीं मिली इन लोगों के संघर्ष से समाज में जागरूकता बढ़ती गई अंत में मुस्लिम राज स्थापित हुआ उन्होंने भी वर्ण व्यवस्था के खिलाफ कोई कार्य या आघात नहीं क्या जिस कारण वर्ण व्यवस्था पूर्णतः स्थापित रही फिर अंत में जाकर अंग्रेजों का शासन स्थापित हो गया जिसमें अंग्रेजों के साथ यहां के राजाओ द्वारा सिंधी स्थापित की इस सिंधी में राजा अपने राज्य से उत्पादन का कुछ भाग अंग्रेजों को दिया जाने लगा और उत्पादन का वह भाग उस वर्ण का था और उनके लोगों पर अधिक अत्याचार बढ़ गए रजवाड़ों के मालिकों द्वारा अधिक उत्पादन करने को बांदे क्या जाने लगा और उनका शोषण होने लगा जो मेहनत कर उत्पादन और धन अर्जित करने का माध्यम था जिसका समाज में एक नाम प्रचलित हो गया जिसका नाम जिमेदारी प्रथा था इस जिमेदारी प्रथा में गांव गांव में एक मुखिया बना दिया जाता था जो पहले से ही गांव के लोगों का शोषण करता था इसी तरह अलग-अलग गांव में अलग अलग मुखिया होता इस प्रकार गांव गांव से उत्पादन माल और धन अर्जित कर रजवाड़े के मालिक राजा के पास राजा के लिए जाता था जिसने केवल अपने हित के लिए अंग्रेजों से सिंधी ली थी। और इस प्रकार अंग्रेजों को उत्पादन का अच्छा माल और धन जाता रहा भारत के विभिन्न रजवाड़ों के राजाओं द्वारा अंग्रेजों की साथ की गई सिंधी ही आजाद भारत के वर्तमान भारत की निजीकरण नहीं सिंधी है जिसके द्वारा भारत की संपत्ति को सरकार द्वारा निजी मालिकों को बेचना और सरकार द्वारा चुपके से धन अर्जित करना ही भारत सरकार की निजी लोगों के साथ निजीकरण नहीं अंग्रेजों के सिंधी है। जिसमें भारत के करोड़ों युवाओं का शोषण होने के साथ-साथ बेरोजगारी जैसी बीमारी का जन्म हो रहा है अंग्रेजों की सिंधी का निजीकरण का नया नाम बेरोजगारी है और मनुस्मृति का नया अध्याय निजीकरण है अंग्रेजों और भारत के वर्ण व्यवस्था के सबसे निचले वर्ग के लोग अंग्रेजों के नीति और शिक्षा और सिद्धांत समान अधिकार पर पढ़ने वाला प्रभाव लार्ड मैकाले ने भारत में पहली बार दलितों वंचितों के लिए नई शिक्षा नीति की नींव रखी और 6 अक्टूबर 1860 को लार्ड मैकाले द्वारा लिखी गई भारतीय दंड संहिता लागू हुई और मनुस्मृति की वर्ण व्यवस्था नीति खत्म हुई जिस कारण अंग्रेजों भारत से भगाने की योजना तैयार की गई जब तक अंग्रेज जाने को तैयार हुए जब तक अंग्रेजों ने भारत में धर्म मनुस्मृति और जाति के आधार पर होने वाले अत्याचार को समाप्त करने का संपूर्ण कानून और समान शिक्षा अधिकार ,संपत्ति में व्यवसाय में भारतीय राजव्यवस्था में आदि का कानून बना दिया था अंत में भारत आजाद होने की क्रांति हो गई इसी के साथ भारत आजाद हो गया और आजाद होने से पहले भारतीय संविधान का निर्माण हुआ जिसको डॉक्टर भीमराव अंबेडकर द्वारा तैयार किया गया और इस संविधान में वर्ण व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया और इस संविधान में भारत के सभी लोगों को समान शिक्षा समान संपत्ति तथा धर्म मनुस्मृति और जाति के आधार पर होने वाले अत्याचार के लिए कठोर कानून स्थापित किए गए जो अंग्रेजों के कानून के समक्ष थे भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया इसके बाद सरकारों द्वारा निजी संस्थानों का राष्ट्रीयकरण हुआ भारत में रोजगार के रास्ते संपन्न होने लगे इसके बाद धीरे धीरे भारतीय सरकार द्वारा स्थापित नए संस्थान एवं राष्ट्रीयकरण हुए संस्थानों का फिर से निजीकरण और धीरे धीरे रोजगार समाप्त होने लगे सबसे बड़ा निजीकरण रेलवे का हुआ जिस कर बिहार में आंदोलन होने लगा भारत के समस्त युवाओं से आशा है कि इस आंदोलन को सफलता की ओर निजीकरण का चुनाव में पढ़ने वाला प्रभाव, आने वाले लोकसभा चुनाव में धर्म का नहीं अब तक जितने भी सरकारी विभागों का निजीकरण हुआ है उनका फिर से राष्ट्रीयकरण हो और उन सभी निजी विभागों का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए जिनमें 1000 या उससे अधिक रखते कार्यरत हो लेखक की कलम के दो शब्द पहले सिंधी और आजाद भारत में अर्ध सरकारी गैर सरकारी संस्थानों का राष्ट्रीयकरण हुआ और फिर निजीकरण लगा और फिर राष्ट्रीयकरण का अध्याय को कौन करेगा पूरा ……………………………………………………… ……………………………………….. मुनिराम गेझा( एक और विचारक) Digiprove sealCopyright secured by Digiprove © 2019 Sahity Live All Rights Reserved About the Author muniram socicalvicharak.blogspot.com Visit: मेरी प्रोफाइल | पसंदीदा वेबसाइट कोन है समझाने वाले लोग – मुनिराम गेझा - January 13, 2020 कोन है समझाने वाले लोग-मुनिराम गेझा - January 13, 2020 बोल ( 85 ) बहुजन मुलनिवासी की भारत में पहचान-मुनिराम गेझा - November 25, 2019 कलम या हथियार हो -मुनिराम - November 12, 2019 ईमानदारी एक जीवन की शैली है- मुनिराम - November 1, 2019 सिन्धि से राष्ट्रीयकरण और राष्ट्रीयकरण से निजीकरण से फिर राष्ट्रीयकरण ओर-मुनिराम गेझा - October 30, 2019 सिन्धि से राष्ट्रीयकरण और राष्ट्रीयकरण से निजीकरण से फिर राष्ट्रीयकरण ओर- मुनिराम गेझा - October 29, 2019 प्रदर्शनकारी को आतंक का नाम देने वालों का चेहरा – मुनिराम गेझा - September 21, 2019 सपनों का इंधन -मुनिराम गेझा - August 23, 2019 कलम की ताकत की कल्पना -मुनिराम - August 20, 2019 View All Articles 0 Post Views: 135 Your smile — Kakali Mazumdar तरी यादें-तनूजा बंगला COMMENTS info lebih lengkap October 31, 2019 at 6:16 pm Hi it’ѕ me, I am also visiting this site regulаrly, this web page is in ffact pleasant and the users are in faⅽt sharing fastidious thoughts. http://Caiyuu.com/comment/html/?145737.html 0 informasi Selanjutnya November 1, 2019 at 2:00 am I like thһe helpful info you provide in your articles. 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Comment * About the Author muniram socicalvicharak.blogspot.com Visit: मेरी प्रोफाइल | पसंदीदा वेबसाइट कोन है समझाने वाले लोग – मुनिराम गेझा - January 13, 2020 कोन है समझाने वाले लोग-मुनिराम गेझा - January 13, 2020 बोल ( 85 ) बहुजन मुलनिवासी की भारत में पहचान-मुनिराम गेझा - November 25, 2019 कलम या हथियार हो -मुनिराम - November 12, 2019 ईमानदारी एक जीवन की शैली है- मुनिराम - November 1, 2019 सिन्धि से राष्ट्रीयकरण और राष्ट्रीयकरण से निजीकरण से फिर राष्ट्रीयकरण ओर-मुनिराम गेझा - October 30, 2019 सिन्धि से राष्ट्रीयकरण और राष्ट्रीयकरण से निजीकरण से फिर राष्ट्रीयकरण ओर- मुनिराम गेझा - October 29, 2019 प्रदर्शनकारी को आतंक का नाम देने वालों का चेहरा – मुनिराम गेझा - September 21, 2019 सपनों का इंधन -मुनिराम गेझा - August 23, 2019 कलम की ताकत की कल्पना -मुनिराम - August 20, 2019 View All Articles MEMBERS NEWEST ACTIVE POPULAR Profile picture of Muskaan-Sinha Muskaan-Sinha ACTIVE 57 SECONDS AGO Profile picture of muniram Muniram ACTIVE 3 MINUTES AGO Profile picture of Poonam Dahiya Poonam Dahiya ACTIVE 38 MINUTES AGO Profile picture of DishaLive Group DishaLive Group ACTIVE 42 MINUTES AGO Profile picture of ❤️तुझसे नहीं मैं खुद की किस्मत से खफा हूं😔 ❤️तुझसे नहीं मैं खुद की किस्मत से खफा हूं😔 ACTIVE 49 MINUTES AGO MEMBERS ACTIVITY REVIEWS PUBLISH PRIVACY POLICY COPYRIGHT Designed By: DishaLive Web Design & Solutions