शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

संविधान को समझने के लिए डिग्रियों से ज्यादा शिक्षित होना जरूरी है मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

संविधान को समझने के लिए डिग्रीयों से जायदा शिक्षित होना जरूरी है।- मुनिराम गेझा Muniram February 15, 2020 0 Hindi, आलेख जब भारत में मनुस्मृति और वर्णों के आधार पर न्याय वे अधिकार मिलते थे तब वर्तमान की शिक्षा पद्धति की कोई संरचना नहीं थी या यूं कहें कोई आवश्यकता नहीं थी वह बात अलग है की सम्राट अशोक के शासन काल में नालंदा विश्वविद्यालय जैसे की स्थापना हो चुकी थी यह बात बिल्कुल अलग है की सम्राट अशोक जैसे महान व्यक्तित्व वाले मनुष्य का भारत की जमीन पर जन्म हुआ परंतु वह एक शूद्र शासक था उस महान शासक ने भारत को अखंड भारत बनाया और बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित किया पुष्यमित्र शुंग ने अशोक के उत्तराधिकारी की हत्या कर बौद्ध धर्म को नष्ट करने लगा जिसके बाद ऐसे विधान की रचना हुई जिसमें ब्राह्मण ,छत्रिय, वेशय, शूद्र चार वर्णो का आधार देकर मनुस्मृति की रचना हुई मनुस्मृति की रचना सुन काल में हुई थी इन चारों वर्णों के अधिकार जन्मसिद्ध अधिकार स्थापित कर दिए गए जैसे ब्राह्मण -शिक्षा , क्षत्रिय – युद्ध , वेशय- व्यापार इस व्यापार में भी मनुष्य की खरीद- परोख भी शामिल थी शुद्र वर्ण के लोगों तो इन तीनों वर्णों की सिर्फ गुलामी करने का जन्मसिद्ध अधिकार स्थापित कर दिया गया और सभी वर्ण की महिलाओं को संभोग की वस्तु बना दिया गया यह व्यवस्था सदियों तक चलती रही और दलितों की खरीद – परोख के साथ शूद्रों की महिलाओं को ऊपरी बदन पर कपड़े पहनने का भी अधिकार नहीं था इस शुद्र वर्ण की महिलाओं को इन तीनों वर्णों के पुरुषों के सामने अपना ऊपरी बदन खुला रखना पड़ता था ऐसा ना करने पर उन्हें सारी शोषण और यातनाएं से काफी दिनों तक पीड़ित किया जाता था जिस कारण केरल की एक घटना में एक शूद्र जवान लड़की को जब उसको खुलें बदन दिखाने को मजबूर किया गया तो उसने अपने दोनों स्तनों को काट कर उन मनुवादी के सामने रख दिए जिन्होंने खुला बदन और दिखाने मजबूर किया परंतु अधिक रक्त बहने के कारण कुछ ही समय बाद उसकी मृत्यु हो गई थी यह है घटना केरल के सभी लोगों की जुबां पर होती है शूद्रों की गुलामी कभी न समाप्त होने वाली थी परंतु इस घटना ने समस्त शुद्र के हाथों में क्रांति और शोषण के खिलाफ एक मशाल पकड़वाई थी समस्त भारत में न जाने ऐसी अशंख घटनाओं का जन्म हुआ होगा वैसे तो कोई हिंदू धर्म नहीं है आज के हिंदू या यूं कहें की सनातन धर्म की वर्ण व्यवस्था में विभिन्न प्रकार की ऊंच-नीच जात पात की खाई और आपस की फूट देखकर भारत पर आक्रमण होने लगे होंगे जब भारत पर मुसलमानों का शासन हुआ तो उसके विभिन्न कारण रहे होंगे (1) पहला वर्ण व्यवस्था – इस वर्ण व्यवस्था में चार वर्णों को एक साथ कभी मिलने या बैठने नहीं दिया आज भी जीवित है (2) ब्राह्मण वर्ण – ब्राह्मण वर्ण को शिक्षा देने का अधिकार था और शिक्षा ब्राह्मण क्षत्रिय या शासक वर्ग के लिए थी (3) वेशय वर्ण – वैश्य वर्ण को केवल व्यापार करना था इसमें वर्ण मैं शूद्र वर्ण के पुरुष तथा महिलाओं का भी खरीद परोख शामिल था (4) शूद्र वर्ण – शूद्र वर्ण को इन तीनों वर्णों की गुलामी करना था जो मनुस्मृति ने गुलामी करना जन्मसिद्ध अधिकार बना दिया था जिस कारण किए चारों वर्ण कभी एक साथ ना खड़े हो सके और ना कभी एक साथ खा सकें और ना कभी एक साथ युद्ध कर सके और भारत एकाएक गुलाम होता चला गया यहीं से भारत को गुलामी का दाग लगा पहले मुस्लिम शासन हुआ इसके बाद अंग्रेजों का शासन हुआ परंतु हिंदू नीति द्वारा मुस्लिम शासन को नहीं उखाड़ा गया क्योंकि मुस्लिम शासकों द्वारा वर्ण व्यवस्था पर कोई भी किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाया गया परंतु अंग्रेजों द्वारा वर्ण व्यवस्था के द्वारा होने वाली गुलामी के षडयंत्र ऊपर प्रतिबंध लगाकर शुद्र को वह सब अधिकार दिए जाने लगे जो अधिकार उन्हें सदियों से नहीं मिल रहे थे और अंग्रेजों ने शुद्र वर्ण को अपने कारखानों के लिए आकर्षित किया और शिक्षा का द्वार खोल दिया जब अंग्रेजों को यह लगा कि अब हमें यहां से जाना होगा जब तक अंग्रेजों ने शुद्र को संपूर्ण अधिकार दे दिए आजाद भारत को चलाने के लिए भारत के लोगों से अंग्रेजों ने एक ऐसा आधार मांगा की भारत के आजाद लोगों को क्या क्या अधिकार होंगे और भारत की जनता का प्रतिनिधित्व किस प्रकार होगा भारत की जनता का भिन्न – भिन्न समुदाय द्वारा प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों द्वारा संविधान सभा की स्थापना हुई जिसके अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद कथा संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ बी आर अंबेडकर को नियुक्त किया गया कुल मिलाकर इस सभा में 7 लोग थे जिनके द्वारा ऐसे संविधान की रचना की गई कि विभिन्न धर्मों के और विभिन्न जातियों के लोगों को मौलिक अधिकार दिए गए थे भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष संविधान तैयार किया गया भारतीय संविधान के 100 वर्ष पूर्ण होने पर विश्व में सर्वश्रेष्ठ भारतीय संविधान साबित हुआ संविधान में दिए गए अधिकारों में से एक शिक्षा का मौलिक अधिकार है जिसकी वजह से अपने अधिकार और शोषण के खिलाफ सरकार की नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतर कर अपनी अधिकार मांगते हैं परंतु अधिकार मांगने या बचाने के लिए ” संविधान को समझने के लिए डिग्रियों से जायदा जरूरी है क्योंकि भारतीय संविधान इतना सरल है कि भारत की जनता को अपने अधिकारों को मांगलिया बचाने के लिए डिग्रियों से जायदा शिक्षित होना जरूरी होगा क्योंकि दसवीं पास, बारहवीं पास व्यक्ति भी भारतीय संविधान को अच्छी तरह पढ़कर समझ सकता है” क्योंकि यह हिंदी भाषा में भी स्पष्ट है जिस जिस तरह भारत की जनता में शिक्षा का प्रसार बढ़ता जा रहा है ठीक उसी प्रकार भारत की जनता अपने अधिकारियों समझने और बचाने के लिए भारत की जनता उस किताब तक पहुंचेगी जिसमें उसके अधिकार सुरक्षित हैं और 25 – 11 – 2016 से 5 – 02 – 2020 दिनों में उस किताब की बिक्री 70 सालों में हिंदी बार क्यों इतनी बढ़ गई भारत सरकार द्वारा भारतीय संविधान में धर्म के आधार पर CAB , NCR , NPR , जैसे कानून लाए गए और असम जैसे राज्यों में उपरोक्त कानून जैसे धर्म पर आधारित कानून लागू किए गए वही 19 लाख भारत की जनता भारत के नागरिक होते हुए भी यह साबित नहीं कर सकी की वह भारतीय नागरिक हैं और 19 लाख में 15 लाख दलित आदिवासी लोग हैं जो भारत के मूल निवासी हैं और 400000 लोग मुस्लिम है इन मुस्लिमों को वहां की सरकार द्वारा डिटेंशन कैंप भेज दिया गया इनमें कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भारत सरकार के आर्मी एयर फोर्स आदि मैं अपनी सेवा देकर रिटायर हो चुके हैं यूं कहूं तो इन लोगों को फिर गुलाम बना लिया गया है उनकी गुलामी की जंजीरों को काटने के लिए उन धर्मनिरपेक्ष विचारधाराओं के लोगों को लड़ना होगा जो उपरोक्त कानून की की हद से बाहर या अभी बचे हुए हैं उनके तथा अपने अधिकारों को बचाने के लिए एक ही किताब रास्ता दिखा सकती है यह वह किताब है जो किताब अधिकतर वकीलों के पास पाई जाती है यह किताब भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने हाथ में पाने की जीत होगी तो सभी ग्रंथों से जायदा एक ही किताब की छपाई में बिक्री होगी “जिस किताब में भारत की जनता जनता के अधिकारों का वर्णन कर उनको सुरक्षित करती है और तब जनता के द्वारा जनता के लिए चुनी गई सरकार द्वारा भारत की जनता के अधिकारों को सदियों तक सुरक्षित रखने का संकल्प लेती हो और उसी किताब को हाशिए पर रखकर अधिकार को खत्म किए जा रहे हो जिस किताब से सत्ता में का काबिज हो गई तब जनता मी उसी किताब को खरीदने की होड़ लगेगी अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए धर्म आधारित या मनुवाद आधारित सरकार को हटाकर उस किताब की रक्षा करना भारत की जनता का ही दायित्व है उस किताब का नाम कोई धार्मिक वेद , पुराण , कुरान , रामायण , महाभारत , ग्रन्थ आदि नहीं है। बल्कि उस किताब का नाम भारतीय संविधान है।” लेखक की कलम के दो शब्द उपरोक्त में जो भी लिखा गया है संविधान को समझने के लिए डिग्रियों की आवश्यकता नहीं शिक्षित होना है और जब धर्मों के आधार पर अधिकार और न्याय मिलते हैं तो आपस में स्वयं लड़ते हैं परंतु भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्ष है इसलिए 70 सालों में पहली बार अपने अधिकारों को बचाने के लिए भारत की जनता में उस किताब को खरीदने की होड़ मची है धर्म ग्रंथों से अधिक भारतीय संविधान प्रतिलिपि छपने लगी हैं मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

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