शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

आजाद भारत का गुलाम नागरिक हूं मैं मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

आजाद भारत का गुलाम नागरिक हूं मैं जब भारत में आर्य दक्षिण भारत से आकर और भारत के मूल निवासियों ( अनार्यों ) पर हमला कर गुलाम बनाकर और भारत में अपने धर्म सनातन धर्म की स्थापना की कुछ सदियों बाद हिण्डस से हिंद और हिंद से हिंदू धर्म बनाकर अपने वर्चस्व का निर्माण किया और चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के रूप में अखंड भारत बनाने का सपना देखा और उसको पूरा किया परंतु हिंदू धर्म की ऊंच-नीच भेदभाव के कारण हिंदू धर्म से समय-समय पर अनेक धर्मों का निर्माण हुआ चाहे वह सिख धर्म हो बुद्ध धर्म हो इस्लाम धर्म हो इसाई धर्म हो इन धर्म का निर्माण होने का कारण एक ही हो सकता है वर्ण व्यवस्था और ऊंच-नीच जात पात आदि जिस कारण भारत रियासतें आपस में ही एक दूसरे को अपने आधीन करने को उतारू होने लगी भारत और भारत के नागरिक एक दूसरे के गुलाम होने लगे जिस कारण 1200 ईसवी के आस-पास भारत पर मुस्लिम आक्रमण हुआ और भारत में इस्लाम धर्म के स्थापना हो गई इस्लाम धर्म वालों ने भारत के वर्ण व्यवस्था में कोई भी परिवर्तन नहीं किया 1600 ईसवी के आस-पास अंग्रेजों द्वारा गुजरात में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापित कर अंग्रेजी शासन की नींव रखी परंतु भारत को अधिकतर अंग्रेजों का ही गुलाम क्यों कहा गया क्योंकि हिंदू धर्म और मुस्लिम धर्म के द्वारा बनाये गए नियमों को अंग्रेजों द्वारा समाप्त कर नए नियमों की नीव रखी गई समान कानून बनाकर सबको शिक्षा अधिकार स्थापित कर दी गई और भारत की जनता से संबंधित वे नियम खत्म कर दिए गए जो भारत की जनता में ऊंच-नीच भेदभाव वर्ण व्यवस्था आदि के आधार पर अन्याय करता हो शायद यही कारण होगा कि भारत को अंग्रेजों का गुलाम कहां गया क्योंकि इस व्यवस्था को किसी और ने समाप्त करने का साहस नहीं किया और इसी को भारत की आजादी की क्रांति का नाम दिया गया और आजादी की क्रांति के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया और 70 साल बाद भी भारत में कुछ जगह आज भी भारत के ही नागरिकों द्वारा भारत के नागरिकों के साथ गुलाम नागरिकों की व्यवहार किया जाता है और लोकतंत्र के सबसे बड़े देश भारत में माननीय श्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारतीय तिरंगे का अपमान किया जाता है  अगर कोई भारत का नागरिक होने के नाते से भारतीय तिरंगे का अपमान नए करने को माननीय श्री प्रधानमंत्री जी को ऐसा ना करने के लिए कहे तो और उस नागरिक को प्रधानमंत्री के ट्विटर से बदले में आजाद भारत में गुलाम कहां जाए तो भारतीय संविधान और लोकतंत्र की हत्या है क्योंकि भारतीय उच्च पद पर विराजमान माननीय प्रधानमंत्री द्वारा भारत के नागरिक को गुलाम कहकर संबोधित क्योंकि भारतीय संविधान में सबको समान अधिकार सबको समान कानून का प्रयोग करने का अधिकार समान है शायद इस पर गोर की जाए तो हमारी न्यायपालिका स्वत ही संज्ञान ले सकती हैं आजाद भारत के गुलाम नागरिकों अंदाजा असम में एन सी आर के आधार पर जनता को बाहर निकाला गया है जिस कारण असस के आन्दोलन शुरू हो गया यह आन्दोलन समस्त भारत में हों रहा है इन ताजी घटनाओं से भी लगाया और अब एन .पी .आर . लाया जा रहा है जो लोग एन .सी .आर . के आधार पर डिटेंशन कैंप में बन्द है उन लोगों को 50 वर्ग फुट मैं 200 महिलाएं रहेंगी इनके लिए दो बाथरूम और दो शौचालय तथा बाकी सुविधाओं का भी इन सुविधाओं से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह स्थिति जेल से भी अधिकतर होगी आखिर और सबसे अधिक मूर्ख लोग हमारी न्याय प्रणाली में बैठे हैं जो हाई कोर्ट के न्यायाधीश यह फैसला दे रहे हैं कि वोटर आईडी पैन कार्ड आधार कार्ड जमीन की रजिस्ट्री कागज आदि नागरिकता के सबूत नहीं माने जाएंगे जबकि यह फैसला देने वाले लोग उपरोक्त के आधार पर नौकरी पर स्थापित हुए हैं पहले इन लोगों को नौकरी से हटा कर इन लोगों को डिटेंशन कैंप भेजा जाए ताकि पता चले गुलामी क्या है   यह स्थिति जेल से भी अधिक कष्टदायक होगी इन लोगों को डिटेंशन कैंप में कब तक रखा जा सकता है जब पूरे देश में एन .आर .सी ,एन .पी. आर ,केस आदि उपरोक्त के आधार पर लागू हो जाएगी बाहर कम से कम 6 महीने और अधिक सीमा का पता नहीं और इन लोगों को उन देशों में भेज दिया जाएगा जहां सिर्फ कार्य करने के लिए इंसानों की आवश्यकता होती है वहां पर इन लोगों को गुलाम बनाकर रखा जाएगा इसका सीधा मतलब है मनुष्य की खरीद फरोख और सदियों पुराना रास्ता फिर से खुल जाएगा और आजाद भारत में फिर से मनुस्मृति लागू हो जाएगी और फिर कहलाएगा आजाद भारत का एक गुलाम नागरिक हूं मैं लेखक की कलम के दो शब्द उपरोक्त में जो भी लिखा गया है एक खास ख्याल रखा गया है कि भारत के किसी भी उच्च पद पर विराजमान राजनेता , उच्च पदाधिकारी या अन्य किसी धर्म या धर्म से संबंधित किसी भी मनुष्य की भावनाओं को आहत ना करने किसी भी प्रकार की कोशिश नहीं की गई है परंतु संविधान से पहले और संविधान के बाद जो होने लगा है उस पर मानवता के अधिकारों के लिए संविधान में मिले अधिकारों को इस लेख में प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है और जो गुलामी का शब्द भारत पर सदियों से कलंकित उस शब्द का संवैधानिक तरीके से विरोध करने का प्रयास किया है ‌मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

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