शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

आजाद भारत का गुलाम नागरिक हूं मैं मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

आजाद भारत का गुलाम नागरिक हूं मैं जब भारत में आर्य दक्षिण भारत से आकर और भारत के मूल निवासियों ( अनार्यों ) पर हमला कर गुलाम बनाकर और भारत में अपने धर्म सनातन धर्म की स्थापना की कुछ सदियों बाद हिण्डस से हिंद और हिंद से हिंदू धर्म बनाकर अपने वर्चस्व का निर्माण किया और चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के रूप में अखंड भारत बनाने का सपना देखा और उसको पूरा किया परंतु हिंदू धर्म की ऊंच-नीच भेदभाव के कारण हिंदू धर्म से समय-समय पर अनेक धर्मों का निर्माण हुआ चाहे वह सिख धर्म हो बुद्ध धर्म हो इस्लाम धर्म हो इसाई धर्म हो इन धर्म का निर्माण होने का कारण एक ही हो सकता है वर्ण व्यवस्था और ऊंच-नीच जात पात आदि जिस कारण भारत रियासतें आपस में ही एक दूसरे को अपने आधीन करने को उतारू होने लगी भारत और भारत के नागरिक एक दूसरे के गुलाम होने लगे जिस कारण 1200 ईसवी के आस-पास भारत पर मुस्लिम आक्रमण हुआ और भारत में इस्लाम धर्म के स्थापना हो गई इस्लाम धर्म वालों ने भारत के वर्ण व्यवस्था में कोई भी परिवर्तन नहीं किया 1600 ईसवी के आस-पास अंग्रेजों द्वारा गुजरात में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापित कर अंग्रेजी शासन की नींव रखी परंतु भारत को अधिकतर अंग्रेजों का ही गुलाम क्यों कहा गया क्योंकि हिंदू धर्म और मुस्लिम धर्म के द्वारा बनाये गए नियमों को अंग्रेजों द्वारा समाप्त कर नए नियमों की नीव रखी गई समान कानून बनाकर सबको शिक्षा अधिकार स्थापित कर दी गई और भारत की जनता से संबंधित वे नियम खत्म कर दिए गए जो भारत की जनता में ऊंच-नीच भेदभाव वर्ण व्यवस्था आदि के आधार पर अन्याय करता हो शायद यही कारण होगा कि भारत को अंग्रेजों का गुलाम कहां गया क्योंकि इस व्यवस्था को किसी और ने समाप्त करने का साहस नहीं किया और इसी को भारत की आजादी की क्रांति का नाम दिया गया और आजादी की क्रांति के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया और 70 साल बाद भी भारत में कुछ जगह आज भी भारत के ही नागरिकों द्वारा भारत के नागरिकों के साथ गुलाम नागरिकों की व्यवहार किया जाता है और लोकतंत्र के सबसे बड़े देश भारत में माननीय श्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारतीय तिरंगे का अपमान किया जाता है  अगर कोई भारत का नागरिक होने के नाते से भारतीय तिरंगे का अपमान नए करने को माननीय श्री प्रधानमंत्री जी को ऐसा ना करने के लिए कहे तो और उस नागरिक को प्रधानमंत्री के ट्विटर से बदले में आजाद भारत में गुलाम कहां जाए तो भारतीय संविधान और लोकतंत्र की हत्या है क्योंकि भारतीय उच्च पद पर विराजमान माननीय प्रधानमंत्री द्वारा भारत के नागरिक को गुलाम कहकर संबोधित क्योंकि भारतीय संविधान में सबको समान अधिकार सबको समान कानून का प्रयोग करने का अधिकार समान है शायद इस पर गोर की जाए तो हमारी न्यायपालिका स्वत ही संज्ञान ले सकती हैं आजाद भारत के गुलाम नागरिकों अंदाजा असम में एन सी आर के आधार पर जनता को बाहर निकाला गया है जिस कारण असस के आन्दोलन शुरू हो गया यह आन्दोलन समस्त भारत में हों रहा है इन ताजी घटनाओं से भी लगाया और अब एन .पी .आर . लाया जा रहा है जो लोग एन .सी .आर . के आधार पर डिटेंशन कैंप में बन्द है उन लोगों को 50 वर्ग फुट मैं 200 महिलाएं रहेंगी इनके लिए दो बाथरूम और दो शौचालय तथा बाकी सुविधाओं का भी इन सुविधाओं से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह स्थिति जेल से भी अधिकतर होगी आखिर और सबसे अधिक मूर्ख लोग हमारी न्याय प्रणाली में बैठे हैं जो हाई कोर्ट के न्यायाधीश यह फैसला दे रहे हैं कि वोटर आईडी पैन कार्ड आधार कार्ड जमीन की रजिस्ट्री कागज आदि नागरिकता के सबूत नहीं माने जाएंगे जबकि यह फैसला देने वाले लोग उपरोक्त के आधार पर नौकरी पर स्थापित हुए हैं पहले इन लोगों को नौकरी से हटा कर इन लोगों को डिटेंशन कैंप भेजा जाए ताकि पता चले गुलामी क्या है   यह स्थिति जेल से भी अधिक कष्टदायक होगी इन लोगों को डिटेंशन कैंप में कब तक रखा जा सकता है जब पूरे देश में एन .आर .सी ,एन .पी. आर ,केस आदि उपरोक्त के आधार पर लागू हो जाएगी बाहर कम से कम 6 महीने और अधिक सीमा का पता नहीं और इन लोगों को उन देशों में भेज दिया जाएगा जहां सिर्फ कार्य करने के लिए इंसानों की आवश्यकता होती है वहां पर इन लोगों को गुलाम बनाकर रखा जाएगा इसका सीधा मतलब है मनुष्य की खरीद फरोख और सदियों पुराना रास्ता फिर से खुल जाएगा और आजाद भारत में फिर से मनुस्मृति लागू हो जाएगी और फिर कहलाएगा आजाद भारत का एक गुलाम नागरिक हूं मैं लेखक की कलम के दो शब्द उपरोक्त में जो भी लिखा गया है एक खास ख्याल रखा गया है कि भारत के किसी भी उच्च पद पर विराजमान राजनेता , उच्च पदाधिकारी या अन्य किसी धर्म या धर्म से संबंधित किसी भी मनुष्य की भावनाओं को आहत ना करने किसी भी प्रकार की कोशिश नहीं की गई है परंतु संविधान से पहले और संविधान के बाद जो होने लगा है उस पर मानवता के अधिकारों के लिए संविधान में मिले अधिकारों को इस लेख में प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है और जो गुलामी का शब्द भारत पर सदियों से कलंकित उस शब्द का संवैधानिक तरीके से विरोध करने का प्रयास किया है ‌मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

मुजरिम का कातिल कोन मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

मुजरिम का कातिल कोन मुनिराम गेझा ( एक और विचारक ) इस संसार में मनुष्य द्वारा बनाए गए समुदाय और समुदाय से धर्मों का निर्माण हुआ होगा जिसका उद्देश्य सिर्फ इतना होता था कि वह अपने सकारात्मक व्यक्तित्व से उस समुदाय के जीवन से सम्बंधित मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति उन के जीवन की रक्षा करता है जिस कारण वह समुदाय उसको अपने जीवन का आदर्श और पालनहार मानने लगता है और इस व्यक्तित्व से ही विभिन्न व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों निर्माण होता है इसी बीच धार्मिक - आस्तिक , नास्तिक -अ धार्मिक , वास्तविक - वेज्ञानिक युगो का आरम्भ हुआ और इन विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों के समुदाय में एक दूसरे को अपने में मिलाने की अभिलाषा जाग्रत होने लगी और यही से युद्ध आरम्भ होने लगें होंगे जीत गया ( राजा ) और जो हार गया (गुलाम) और यही से वर्ण व जातियों का निर्माण हुआ जिस समुदाय की जनता को जीत मिली वह उच्च जाति और जिस समुदाय की जनता को हार मिली शूद्र , नीच और हारे हुए समुदाय के अधिकारों को पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिए वर्णों का निर्माण कर गुलामी को जन्मसिद्ध अधिकार स्थापित कर दिया गया इसी गुलामी में अमानवीय अत्याचार की अनगिनत इमारत बन सारी हदें गुजर गयी और राजतंत्र बदलते गए परन्तु अमानवीय अत्याचार की सीढ़ियां घुटने की बजाय बढ़ी धर्म आधारित , वर्ण आधारित , जाति आधारित , परंतु वर्ण के खिलाफ किसी भी शासक ने करवट नहीं बदली जब अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाया और कुछ समय बाद भारत में कानून बनाकर न्याय , शिक्षा , उधोगिक क्रान्ति बीज रोप दिया इन सब को पूर्ण रूप से स्थापित करने के लिए उच्च श्रेणी के आयोग की स्थापना हुई सबको न्याय , शिक्षा , रोजगार व कड़े कानून स्थापित कर अधिकार स्थापित कर दिये गए। और अमानवीय अत्याचार पर अधिकतर प्रतिबंध लगा दिए गए थे और जिस शूद्र वर्ण अमानवीय अत्याचार के जुल्म को सदियों से ढो रहा था अब अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून से उसको उनके अधिकार मिल रहें थे यह कार्य साइमन कमीशन बहुत ही तेज़ी और सूझबूझ से कर रहा था साइमन कमीशन के कानून के बढ़ते प्रभाव को अंग्रेजों को भारत से भगाने का निर्णय लिया गया जिसका कारण तीनों वर्णों से लेकर साइमन कमीशन द्वारा शूद्र वर्ण को अधिकार दिए जा रहे थे और अंग्रेजों को भारत से भगाना जाने लगा जिसको नाम दिया भारत की आज़ादी की क्रान्ति भारत को अंग्रेजों से आजादी चाहिए थी परंतु भारत के शूद्र वर्ण को अंग्रेजों से ज्यादा मनुस्मृति और मनुवाद , पाखंडवाद , धर्मवाद ,उच - नीच , जात - पात , भेद - भाव से आजादी चाहिए थी अंग्रेजों के बाद बहुजन समाज के समस्त अधिकारियों का रास्ता भारतीय संविधान हैं। परन्तु भारतीय संविधान में अमानवीय अत्याचार के खिलाफ इतने कड़े कानून कानूनों का प्रावधान है फिर भी आजाद भारत में आज भी मुम्बई में गन्ने की छिलाई के लिए एक साहूकार द्वारा 35 - 45महिलाओ के पर दबाव बनाकर प्राईवेट पार्टस निकलवाने को मजबूर किया गया , गुजरात का ऊणा काण्ड , राजस्थान में पति-पत्नी को पति के सामने महिला के बलात्कार करना , घरों में आग लगा कर मार देना , मध्यप्रदेश में रास्ते किनारे सोचालय करने के कारण दो बच्चों की मौत के करना , या यू पी में सहारनपुर की घटना या अम्बेडकर और बुद्ध की कथा करने बहुजन समाज पर हमला करना , हरियाणा में बहुजन समाज के हाथ पैर काटना और राजस्थान के नागौर में युवक के साथ मात्र 100 रपये चोरी का आरोप लगा कर सात लोगों द्वारा एक युवक के प्राइवेट पार्ट में पेट्रोल डालना आदि ना जाने समस्त भारत में रोज कितनी घटना होती है जो पत्रकारिता मिडिया नहीं दिखाती है जब उन घटनाओं पर शोसल मिडिया के माध्यम से शासक , प्रशासन के लिए एक आन्दोलन का रूप लेती है जब जाकर कुछ कार्यवाही होती है फिर भी पीड़ित को ना तो उचित सहायता और उचित धाराओं में कार्यवाही का ना होना। ऐसी घटनाओं से मन विचलित होना लाजिमी है मेरे मन में बार बार एक ही सवाल और मुझे परेशान कर रहा था आखिर कब ऐसी घटनाओं का अन्त होगा क्योंकि कुछ ही समय की कारावास के बाद आरोपी उसी खुली हवाओं में और घरनित घटनाओं को अनजाम देने के लिए आ जाते और आरोपी मनविचल करने वाली घटनाओं के आरोपी कारावास के बाद भी शान से जी सकते हैं तो ऐसे घटनाओं के आरोपी की मृत्यु करने के बाद हम क्यों नहीं और यह कार्य करने के लिए उन्हीं लोगों को तैयार करना होगा जिन लोगों के साथ उपरोक्त घटनाएं हो चुकी है क्योंकि स्वाभिमान और इज्जत से बडी - जेल नहीं और बहुजन समाज की बहनों से भी यही कहना चाहूंगा कि जिनके साथ बलात्कार जैसी घटनाएं हो चुकी है अगर कोई आप की इज्जत पर हमला करें तो आप उसकी ज़िन्दगी पर हमला कर दो पुनः स्वाभिमान और इज्जत से बडी जेल नहीं और हों ऐसे संगठन का निर्माण उपरोक्त जेसी घटनाओं के आरोपी को कानून की गिरफ्त से पहले या बाद में सिर्फ मृत्यु और कह दो मुजलिम का कातिल मैं हूं यह कार्य जिला , राज्य ,ही नहीं देशव्यापी हो क्योंकि जब एसी घटनाओं को अनजाम देकर और सजा पाकर भी आरोपी सर उठाकर जीने का साहस करते हैं। तो तुम क्यों नहीं और तुम अपनी इज्जत की रक्षा और मान स्वाभिमान के बचाने के लिए आरोपी की मृत्यु भी क्यों ना करनी पड़े और सजा के बाद समाज में सर उठाकर कर स्वाभिमान के साथ जियो मुझे और मेरे लेख को बेसब्री से इंतजार होगा लोग फूलन देवी के कार्य को (नैशनल स्वाभिमान फूलन देवी ओरगेनाईजेशन ) स्तम्भ बनाएगा अर्थात मुजरिम का कातिल कोन लेखक की कलम के दो शब्द सत्तर सालों में भी भारत की सत्ता शासन और न्याय प्रणाली यह साबित करने का प्रयत्न करती है कि अपराध समाप्त हुआ है उसके अगले ही कुछ समय बाद ऐसी घटनाएं घटित हो जाती है जिसमें भारत को विश्व पटल के मंच पर शर्मशार होना पड़ता है और सबके मनविचल हों जातें हैं परंतु ( एक और विचारक ) तो कलम विचलित हो गई और मेरे मन ने लिखा उपरोक्त मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

संविधान को समझने के लिए डिग्रियों से ज्यादा शिक्षित होना जरूरी है मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

संविधान को समझने के लिए डिग्रीयों से जायदा शिक्षित होना जरूरी है।- मुनिराम गेझा Muniram February 15, 2020 0 Hindi, आलेख जब भारत में मनुस्मृति और वर्णों के आधार पर न्याय वे अधिकार मिलते थे तब वर्तमान की शिक्षा पद्धति की कोई संरचना नहीं थी या यूं कहें कोई आवश्यकता नहीं थी वह बात अलग है की सम्राट अशोक के शासन काल में नालंदा विश्वविद्यालय जैसे की स्थापना हो चुकी थी यह बात बिल्कुल अलग है की सम्राट अशोक जैसे महान व्यक्तित्व वाले मनुष्य का भारत की जमीन पर जन्म हुआ परंतु वह एक शूद्र शासक था उस महान शासक ने भारत को अखंड भारत बनाया और बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित किया पुष्यमित्र शुंग ने अशोक के उत्तराधिकारी की हत्या कर बौद्ध धर्म को नष्ट करने लगा जिसके बाद ऐसे विधान की रचना हुई जिसमें ब्राह्मण ,छत्रिय, वेशय, शूद्र चार वर्णो का आधार देकर मनुस्मृति की रचना हुई मनुस्मृति की रचना सुन काल में हुई थी इन चारों वर्णों के अधिकार जन्मसिद्ध अधिकार स्थापित कर दिए गए जैसे ब्राह्मण -शिक्षा , क्षत्रिय – युद्ध , वेशय- व्यापार इस व्यापार में भी मनुष्य की खरीद- परोख भी शामिल थी शुद्र वर्ण के लोगों तो इन तीनों वर्णों की सिर्फ गुलामी करने का जन्मसिद्ध अधिकार स्थापित कर दिया गया और सभी वर्ण की महिलाओं को संभोग की वस्तु बना दिया गया यह व्यवस्था सदियों तक चलती रही और दलितों की खरीद – परोख के साथ शूद्रों की महिलाओं को ऊपरी बदन पर कपड़े पहनने का भी अधिकार नहीं था इस शुद्र वर्ण की महिलाओं को इन तीनों वर्णों के पुरुषों के सामने अपना ऊपरी बदन खुला रखना पड़ता था ऐसा ना करने पर उन्हें सारी शोषण और यातनाएं से काफी दिनों तक पीड़ित किया जाता था जिस कारण केरल की एक घटना में एक शूद्र जवान लड़की को जब उसको खुलें बदन दिखाने को मजबूर किया गया तो उसने अपने दोनों स्तनों को काट कर उन मनुवादी के सामने रख दिए जिन्होंने खुला बदन और दिखाने मजबूर किया परंतु अधिक रक्त बहने के कारण कुछ ही समय बाद उसकी मृत्यु हो गई थी यह है घटना केरल के सभी लोगों की जुबां पर होती है शूद्रों की गुलामी कभी न समाप्त होने वाली थी परंतु इस घटना ने समस्त शुद्र के हाथों में क्रांति और शोषण के खिलाफ एक मशाल पकड़वाई थी समस्त भारत में न जाने ऐसी अशंख घटनाओं का जन्म हुआ होगा वैसे तो कोई हिंदू धर्म नहीं है आज के हिंदू या यूं कहें की सनातन धर्म की वर्ण व्यवस्था में विभिन्न प्रकार की ऊंच-नीच जात पात की खाई और आपस की फूट देखकर भारत पर आक्रमण होने लगे होंगे जब भारत पर मुसलमानों का शासन हुआ तो उसके विभिन्न कारण रहे होंगे (1) पहला वर्ण व्यवस्था – इस वर्ण व्यवस्था में चार वर्णों को एक साथ कभी मिलने या बैठने नहीं दिया आज भी जीवित है (2) ब्राह्मण वर्ण – ब्राह्मण वर्ण को शिक्षा देने का अधिकार था और शिक्षा ब्राह्मण क्षत्रिय या शासक वर्ग के लिए थी (3) वेशय वर्ण – वैश्य वर्ण को केवल व्यापार करना था इसमें वर्ण मैं शूद्र वर्ण के पुरुष तथा महिलाओं का भी खरीद परोख शामिल था (4) शूद्र वर्ण – शूद्र वर्ण को इन तीनों वर्णों की गुलामी करना था जो मनुस्मृति ने गुलामी करना जन्मसिद्ध अधिकार बना दिया था जिस कारण किए चारों वर्ण कभी एक साथ ना खड़े हो सके और ना कभी एक साथ खा सकें और ना कभी एक साथ युद्ध कर सके और भारत एकाएक गुलाम होता चला गया यहीं से भारत को गुलामी का दाग लगा पहले मुस्लिम शासन हुआ इसके बाद अंग्रेजों का शासन हुआ परंतु हिंदू नीति द्वारा मुस्लिम शासन को नहीं उखाड़ा गया क्योंकि मुस्लिम शासकों द्वारा वर्ण व्यवस्था पर कोई भी किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाया गया परंतु अंग्रेजों द्वारा वर्ण व्यवस्था के द्वारा होने वाली गुलामी के षडयंत्र ऊपर प्रतिबंध लगाकर शुद्र को वह सब अधिकार दिए जाने लगे जो अधिकार उन्हें सदियों से नहीं मिल रहे थे और अंग्रेजों ने शुद्र वर्ण को अपने कारखानों के लिए आकर्षित किया और शिक्षा का द्वार खोल दिया जब अंग्रेजों को यह लगा कि अब हमें यहां से जाना होगा जब तक अंग्रेजों ने शुद्र को संपूर्ण अधिकार दे दिए आजाद भारत को चलाने के लिए भारत के लोगों से अंग्रेजों ने एक ऐसा आधार मांगा की भारत के आजाद लोगों को क्या क्या अधिकार होंगे और भारत की जनता का प्रतिनिधित्व किस प्रकार होगा भारत की जनता का भिन्न – भिन्न समुदाय द्वारा प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों द्वारा संविधान सभा की स्थापना हुई जिसके अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद कथा संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ बी आर अंबेडकर को नियुक्त किया गया कुल मिलाकर इस सभा में 7 लोग थे जिनके द्वारा ऐसे संविधान की रचना की गई कि विभिन्न धर्मों के और विभिन्न जातियों के लोगों को मौलिक अधिकार दिए गए थे भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष संविधान तैयार किया गया भारतीय संविधान के 100 वर्ष पूर्ण होने पर विश्व में सर्वश्रेष्ठ भारतीय संविधान साबित हुआ संविधान में दिए गए अधिकारों में से एक शिक्षा का मौलिक अधिकार है जिसकी वजह से अपने अधिकार और शोषण के खिलाफ सरकार की नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतर कर अपनी अधिकार मांगते हैं परंतु अधिकार मांगने या बचाने के लिए ” संविधान को समझने के लिए डिग्रियों से जायदा जरूरी है क्योंकि भारतीय संविधान इतना सरल है कि भारत की जनता को अपने अधिकारों को मांगलिया बचाने के लिए डिग्रियों से जायदा शिक्षित होना जरूरी होगा क्योंकि दसवीं पास, बारहवीं पास व्यक्ति भी भारतीय संविधान को अच्छी तरह पढ़कर समझ सकता है” क्योंकि यह हिंदी भाषा में भी स्पष्ट है जिस जिस तरह भारत की जनता में शिक्षा का प्रसार बढ़ता जा रहा है ठीक उसी प्रकार भारत की जनता अपने अधिकारियों समझने और बचाने के लिए भारत की जनता उस किताब तक पहुंचेगी जिसमें उसके अधिकार सुरक्षित हैं और 25 – 11 – 2016 से 5 – 02 – 2020 दिनों में उस किताब की बिक्री 70 सालों में हिंदी बार क्यों इतनी बढ़ गई भारत सरकार द्वारा भारतीय संविधान में धर्म के आधार पर CAB , NCR , NPR , जैसे कानून लाए गए और असम जैसे राज्यों में उपरोक्त कानून जैसे धर्म पर आधारित कानून लागू किए गए वही 19 लाख भारत की जनता भारत के नागरिक होते हुए भी यह साबित नहीं कर सकी की वह भारतीय नागरिक हैं और 19 लाख में 15 लाख दलित आदिवासी लोग हैं जो भारत के मूल निवासी हैं और 400000 लोग मुस्लिम है इन मुस्लिमों को वहां की सरकार द्वारा डिटेंशन कैंप भेज दिया गया इनमें कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भारत सरकार के आर्मी एयर फोर्स आदि मैं अपनी सेवा देकर रिटायर हो चुके हैं यूं कहूं तो इन लोगों को फिर गुलाम बना लिया गया है उनकी गुलामी की जंजीरों को काटने के लिए उन धर्मनिरपेक्ष विचारधाराओं के लोगों को लड़ना होगा जो उपरोक्त कानून की की हद से बाहर या अभी बचे हुए हैं उनके तथा अपने अधिकारों को बचाने के लिए एक ही किताब रास्ता दिखा सकती है यह वह किताब है जो किताब अधिकतर वकीलों के पास पाई जाती है यह किताब भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने हाथ में पाने की जीत होगी तो सभी ग्रंथों से जायदा एक ही किताब की छपाई में बिक्री होगी “जिस किताब में भारत की जनता जनता के अधिकारों का वर्णन कर उनको सुरक्षित करती है और तब जनता के द्वारा जनता के लिए चुनी गई सरकार द्वारा भारत की जनता के अधिकारों को सदियों तक सुरक्षित रखने का संकल्प लेती हो और उसी किताब को हाशिए पर रखकर अधिकार को खत्म किए जा रहे हो जिस किताब से सत्ता में का काबिज हो गई तब जनता मी उसी किताब को खरीदने की होड़ लगेगी अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए धर्म आधारित या मनुवाद आधारित सरकार को हटाकर उस किताब की रक्षा करना भारत की जनता का ही दायित्व है उस किताब का नाम कोई धार्मिक वेद , पुराण , कुरान , रामायण , महाभारत , ग्रन्थ आदि नहीं है। बल्कि उस किताब का नाम भारतीय संविधान है।” लेखक की कलम के दो शब्द उपरोक्त में जो भी लिखा गया है संविधान को समझने के लिए डिग्रियों की आवश्यकता नहीं शिक्षित होना है और जब धर्मों के आधार पर अधिकार और न्याय मिलते हैं तो आपस में स्वयं लड़ते हैं परंतु भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्ष है इसलिए 70 सालों में पहली बार अपने अधिकारों को बचाने के लिए भारत की जनता में उस किताब को खरीदने की होड़ मची है धर्म ग्रंथों से अधिक भारतीय संविधान प्रतिलिपि छपने लगी हैं मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )