शुक्रवार, 20 मार्च 2020

बहुजन समाज की राजनीति का उदय या अन्त मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

बहुजन समाज की राजनीति का उदय या अन्त भारत में अधिकतर रूढ़िवादी प्रथाओं का अंत सदियों के बाद हुआ है परंतु जिस स्थान और घर शिक्षा प्रकाश से वंचित रह गया है उसी स्थान और घर में आज भी विभिन्न प्रकार की रूढ़ीवादी प्रथाएं अपनी जड़ जमाई है रूढ़िवादी परंपराओं को लेकर ही भारत में छोटे-छोटे राज्यो का निर्माण और शासन हुआ है और भारत को गुलाम हुआ है इन रूढ़ीवादी परंपराओं को खत्म करने में भारत का गुलाम होने का अहम दायित्व रहा है जैसे सती प्रथा पर रोक सबको , संपत्ति का अधिकार , स्त्रियों को पुरुष के समान अधिकार , पति की मृत्यु के बाद स्त्री को दूसरी शादी का अधिकार आदि इसके बाद भारत में रूढ़िवादी परंपराओं को स्थाई रूप से नियम बनाकर समाप्त कर का दायित्व भारत के सविधान को जाते हैं वो भी अलग बात है कि कुछ लोग शिक्षा , बौद्धिक विकास नहीं होने के कारण उनको रूढ़ीवादी परंपराओं को नहीं जिकड़ी रखा है परंतु भारतीय संविधान ने तो सबको समान अधिकार दिलाने का संकल्प लिया है इसी संकल्प की नींव को ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी नहीं रखी है और रूढ़ीवादी परंपराओं के कारण ही उन्हें और उनकी पत्नी को उनके पिता द्वारा अपने घर से निकाल दिया गया। जिनको आसरा शेख फातिमा बीवी ने दिया और 1948 में (दलितो )बहुजन समाज के विद्यालय खोलो इस संकल्प को डॉक्टर बी आर अंबेडकर ने भारतीय संविधान को लेकर स्थाई नियम अनुसार बनाया कुछ समय बाद बहुजन समाज के लिए भी बौद्ध धर्म का रास्ता भी डॉक्टर बी आर अंबेडकर द्वारा इसी संकल्प को पूर्ण करने के लिए बहुत जनों के लिए धरातल पर राजनीति करने का पूरा का दायित्व मान्यवर साहब काशीराम को जाता है परन्तु साहब कांशीराम द्वारा बार पूर्व क्या गया राजनीतिक धरातल को वह हिस्सा जो भारतीय संविधान के निर्माता डॉक्टर बी आर अंबेडकर द्वारा अपनाया गया था जिसको वर्ण भारत में वर्ण व्यवस्था और रूढ़ीवादी परंपराओं तथा बहुजन समाज की अज्ञानता के कारण पूरा नहीं कर सके क्योंकि डॉक्टर बी आर अंबेडकर को संविधान सभा में जाने से रोका गया सरदार पटेल यह बात कही थी कि " हमने डॉक्टर बी आर अम्बेडकर के लिए संविधान सभा के बाकी दरवाजे तो क्या रोशनदान भी बंद कर दिए है ,, परन्तु दलित नेता योगेंद्र नाथ मंडल और मुस्लिम लीग की मदद से बीआर अंबेडकर संविधान सभा में भेजा गया तुझे उसके बाद चुनाव अंबेडकर चुनाव लड़ा था कांग्रेस ने उनके ही एसिस्टेंट को चुनाव लड़ा बीआर अंबेडकर चुनाव हरवा दिया चुनाव जीत सभा का आयोजन किया जिसमें बी आर अंबेडकर को भी को भी आमंत्रित और बी आर अंबेडकर को विचार व्यक्त करने के लिए मंच पर बुलाया गया और जब बी आर अंबेडकर ने कहा अगर हाथी बैठ भी जाए तो भी गधे से ऊंचा होता है और उस बैठे हुए हाथी को खड़ा करने का प्रयास साहब कांशीराम द्वारा किया गया साहब कांशीराम कोई राजनीतिक परिवार से नहीं थे वे सिर्फ साधारण परिवार में जन्मे नौकरी करते हुए पुणे पहुंच गए एक दिन उनके डिपार्टमेंट का व्यक्ति दीना भाना 14 अप्रैल की प्रार्थना पत्र अपने अधिकारी को दे रहा था परंतु वह अधिकारी किस देने से इंकार कर रहा था और अगर तुमने छुट्टी कर ली तो तुम्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा फिर भी दीना भाना को अपनी नौकरी से ज्यादा प्यारी 14 अप्रैल थी और छुट्टी कर ली तथा इसके बाद अपनी धमकी और शर्त के मुताबिक उसके अधिकारी ने दीना भाना को नौकरी से निकाल दिया यह सब साहब कांशीराम अपनी आंखों देख रही थी परंतु बी आर अंबेडकर से इस सब के बाद साहब कांशीराम ने दीना भाना को अपने पास बुलाया और जब दीना भाना ने साहब कांशीराम को बी आर अंबेडकर बारे में बताया तो साहब कांशीराम ने दीना भाना को कोर्ट में केस लड़ने को कहा परंतु दीना भाना ने साहब कांशीराम से एक प्रश्न किया कि पैसा कहां से आएगा साहब कांशीराम ने दीना भाना से कहा की तुम्हारा वेतन हर महीने घर पहुंचते रहेगा वह वेतन काशीराम अपनी वेतन से देते रहे परंतु दीना भाना से कहां की जिस दिन तुम दुबारा नौकरी करने आओगे उस दिन काशीराम का इस्तीफा तैयार मिलेगा इसके बाद दीना भाना दोबारा नौकरी पर गए शर्त के मुताबिक काशीराम ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और बहुजन समाज को इकट्ठा करने के लिए निकल पड़े और बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर की स्थापना की और साहब कांशीराम द्वारा दलितों को एकजुट करने स्थापना की और साहब कांशीराम के द्वारा दलितों को एकजुट करने और राजनीतिक ताकत बनाने के लिए देशभर में साइकिल रैली निकाली 1964 में बामसेफ तथा 1970 के दशक में दलित शोषित संघर्ष समिति (DS4) 6 दिसंबर 1981 को स्थापना की इसके बाद साइकिल रैली निकालकर 14 अप्रैल 19 84 को बहुजन समाज पार्टी स्थापना और पहली बार समाज की पार्टी नहीं 1993 में मायावती के द्वारा में मुख्यमंत्री रूप में सत्ता पर हो गई उसके बाद एक में सार्वजनिक तौर पर घोषणा कर कुमारी मायावती को अपना घोषित कर दिया इसके साथ ही साहब कांशीराम के कहने पर मुलायम सिंह ने सपा पार्टी बनाई जिसका असर गैर दलितों को संगठित करना था और यह हो अभी दोनों ने मिलकर सरकार बनाई और नारा दिया गया कि मिले '' मुलायम काशीराम हवा में उड़ गए जय श्री राम ,, परंतु यह मिलाप घने दिन नहीं चला इसके बाद मायावती और अखिलेश ने पूर्ण बहुमत से पांच पांच वर्ष शासन किया अगर किसी दलित मुख्यमंत्री पुरुष की बात करें तो जगन्नाथ पहाड़िया राजस्थान के पहले मुख्यमंत्री थे अगर महिला दलित मुख्यमंत्री की बात करें तो बहन कुमारी मायावती उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनी वह अलग बात है कि आज तक कोई भी दलित प्रधानमंत्री नहीं बना यह और भी अत्यधिक बहुत है कि सामाजिक संगठन से राजनीतिक पार्टी का निर्माण हुआ है उनके चीफ ने केंद्र की सरकार में मंत्री पद जरूर हासिल क्या है बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर और इस पार्टी का कहना है कि एकला चलो की नीति साहब कांशीराम द्वारा बताई गई है पार्टी उसी पर चल रही है बहुजन समाज पार्टी की मुखिया ने समय-समय पर पार्टी गतिरोध में एक नेताओं को पार्टी से निष्कासित क्या है इस बात का तो सही तो पता पार्टी की मुखिया और पार्टी से निष्कासित होने वाले को ही पता है और अधिकतर नेता दूसरी पार्टियों में शामिल हो गई परंतु राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री जयप्रकाश को पार्टी से निष्कासित होने के बाद भी किसी भी पार्टी में नहीं गए साहब कांशीराम की पार्टी के लिए काम और बहन कुमारी मायावती जी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए मैं भी काशीराम के नाम से मिशन चला रहे हैं और कहते हैं कि इस मिशन मैं उनके लिए खुला द्वार है जो बहुजन समाज पार्टी से निष्कासित कर दिए गए हैं अप्रैल 2017 को सहारनपुर दलित और ठाकुरों में संघर्ष हुआ इसमें प्रशासन ने बताया कि सहारनपुर दंगे में भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण का हाथ है परंतु मेरी नजरों में संगठन का 2017 इससे पहले कोई भी राज्य स्तर पर प्रदर्शन नहीं देखा गया किंतु 2017 में जो हुआ सब ने अपनी आंखों से देखा जिसके विरोध में बसपा प्रमुख मायावती ने राज्यसभा में समाज की आवाज न उठाने देने के कारण राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया शायद अंबेडकर के बाद ऐसा पहला कोई दलित नेता है दलितों की उठाने न देने के लिए अपने पद से इस्तीफा दिया हो और चंद्रशेखर ने कहा था कि मैं कभी राजनीतिक बाकी नहीं बनाऊंगा काशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी और मिशन में काम करूंगा और अब चंद्रशेखर आजाद द्वारा आजाद समाज पार्टी के नाम से बना ली गई है और ना ही ये साहब कांशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी मिशन के लिए कान करेंगे बहुजन समाज के लोगों को सकारात्मक विचारों यह तय करना होगा एक पार्टी तो साहब कांशीराम द्वारा बनाई गई है एक पार्टी साहब कांशीराम उनके सपनों पर बनाई गई है परंतु आश्चर्य की बात यह है कि बहुजन समाज के अधिकारों के लिए कौन सी पार्टी वास्तविक की लड़ाई लड़ेगी आजाद समाज पार्टी ठीक उसी प्रकार बनाई गई है जिस प्रकार संविधान निर्माता डॉ बी आर अंबेडकर को पुनर्जीवित करने के लिए साहब कांशीराम के द्वारा बहुजन समाज पार्टी बनाई गई थी परंतु उस समय राजनीतिक रूप से बाबा साहब को पूर्णतः लुप्त दूर कर दिया गया था और किसी भी पार्टी कार्यालय या बेनरो पर बाबा साहब की भी नहीं थी जब साहब काशीराम द्वारा पार्टी बनाकर यूपी में सत्ता हासिल कर ली तब जाकर विपक्षी पार्टियों के कार्यालय बेनरो पर बाबा साहब की फोटो आने लगी परंतु साहब कांशीराम और उनके द्वारा बनाई गई पार्टी अभी तक पूर्ण रूप से जीवित और सुरक्षित है साहब कांशीराम के नाम और सपनों पर पार्टी क्यों जितने भी जितने भी पार्टियां बनी है आने वाले समय में बनेंगे खासकर वे पार्टियां साहब कांशीराम के नाम और सपनों पर बनिया बनाई जाएंगी उन पार्टियों के द्वारा साहब कांशीराम के द्वारा बनाई गई पार्टी की वोट काट कर ही साहब कांशीराम की पार्टी को कमजोर करेंगी जो भी पार्टी साहब कांशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी की वोट काट कर उनकी पार्टी को कमजोर करेगी तो फिर उनके सपनों पूरा कैसे करेगी जो भी आज बहुजन समाज के लोग पार्टी बना रहे हैं और आगे भी पार्टी बनाएंगे शायद वे लोग साहब कांशीराम वो नारा भूल गए हैं कि साहब कांशीराम ने कहा था कि जाओ अपने घर की दीवारों पर लिख दो " हम इस देश के शासक हैं,, परंतु हमारे घरों में ऐसी कोई दीवार नहीं मिली उपरोक्त की पंक्ति को लिख सकें और जब आपको साहब कांशीराम के द्वारा हमारे घरों में दीवार मिली तो और " हमने अपने घर की दीवारों पर लिख दिया इस देश की पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी .......................................................................................................…................ साहब कांशीराम के नाम और सपनों पर पार्टी बनाने वालों यहां एक बात तो सिद्ध हो जाती है कि बहुजन समाज पार्टी बसपा प्रमुख को मुख्यमंत्री बनने से रोक सकते हो परंतु बहुजन समाज में साहब कांशीराम के नाम और सपनों पर पार्टी बनाने वालों को शायद बहुजन समाज की राजनीति का उदय लगता है परंतु उपरोक्त की पंक्ति को ध्यान में रखते हुए जब देश में बहुजन समाज के अंदर पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी पार्टी बन जाएंगे बहुजन समाज की राजनीति का उदय नहीं राजनीति का अंत होगा अगर वास्तविक सब काशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी और उनके सपनों को साकार करना है तो सभी सामाजिक संगठनों को राज्य स्तर राष्ट्रीय स्तर पर बहुजन समाज पार्टी के लिए कार्य कर बहन जी को प्रधानमंत्री बनाकर संविधान की रक्षा कर बहुजन अधिकारों को जन तक पहुंचाने के लिए बहुजन समाज पार्टी के तले कार्यरत हो लेखक की कलम के दो शब्द उपरोक्त में जो भी लिखने का प्रयास किया है यह दर्शाने की कोशिश की गई है जब तक बहुजन समाज मैं पार्टियां विपक्षी पार्टियों से अधिक बन जाएंगी तो उन्हें वहीं स्थापित हो जाओगे की फूट गैरों राज करो और बहुजन समाज में अधिक से अधिक पार्टी बनाने से बहुजन समाज का राजनीति का उदय नहीं बल्कि अंत होगाक्योंकि साहब कांशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी अभी तक जीवित और सुरक्षित है और जब तक मायावती जीवित है उत्तर प्रदेश में शायद ही कोई दूसरा दलित मुख्यमंत्री और देश का प्रधानमंत्री बने क्योंकि साहब कांशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी और उन्हीं के द्वारा ही सार्वजनिक रूप से घोषित की गई मायावती उत्तराधिकारी जीवित है क्योंकि बहुजन समाज पार्टी और बसपा प्रमुख मायावती बहुजन समाज के खून में हीमोग्लोबिन की तरह सम्मिलित है जिस तरह से मनुष्य के रक्त से हीमोग्लोबिन की मात्रा नष्ट हो जाती है तो मनुष्य भी मृत हो जाता है मुनिराम गेझा ( एक और विचारक )

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