अधर्म की चादर में धर्म का नाच हो रहा है
चौतरफा बैठे मनुवादी भारत के न्यायालयों में
टूटती जा रही संविधान की यही तो रीढ़ मनुवादी ताकत की पहचान है
मंदिर के नाम पर घेरी अरबों की जागीर है
अ सुन लो भारत के न्यायालयों इनमें भी तो बहुजन की जागीर है
अब बनाया बहुजन ने अस्तित्व अपना इसमें सदियों की पहचान है
य से पार्क नहीं है कबीर, रेदास, साहू जी महाराज, फुले, बिरसा मुंडा, और अंबेडकर की पहचान है
कौन कहता बहुजन का हाथी यह आधा तुम्हारा भी तो भगवान है
कर दो पहले हिसाब हमारी सदियों की कमाई का
मिटा नहीं सकते बहुजन की हस्ती को तुम क्योंकि रक्त सदियों तक धार में हमने बाहाया है
यह विचारक कि नहीं भीम मिशन की कलम की जवानी है
कैसे लो दें भीम मिशन के पार्कों की कीमत तुमको
क्योंकि हिंदुस्तान की नहीं भारत के बहुजन यह जमीन जंग और जागीर है
मुनीराम गेझा( एक और विचारक)
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